हल्कू का चरित्र चित्रण | पूस की रात | प्रेमचंद |

हल्कू का चरित्र चित्रण | पूस की रात | प्रेमचंद |

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हल्कू का चरित्र चित्रण :– इस कहानी में कुल चार पात्र आते हौ। हल्कू किसान, उसकी पत्नी मुन्नी, सहना जो कर्ज़ वसूलने आता है और हल्कू का पालतू कुत्ता जबरा । सहना का जिक्र सिर्फ कहानी के आरंभ में है, उसका कहानी में प्रत्यक्ष प्रवेश नहीं होता। मुन्नी कहानी के पहले और अंतिम भाग में आती है। पहले भाग में वह हल्कू को तीन रुपये सहना को देने से रोकती है। उस समय उसके माध्यम से प्रेमचंद कहानी की कथावस्तु पर प्रकाश डालने वाली कई बाते कहलाते हैं।

उन बातों से और बात करने के अंदाज़ से उसके दृढ़ व्यक्तित्व का पता चलता है। इसके बाद अंतिम भाग में वह पुनः आती है, जब खेत नष्ट हो जाने के बाद वह सवेरे अपने पति के पास पहुँचती है और उसे जगाती है। यहाँ उसका दूसरा रूप सामने आता है। खेत नष्ट हो जाने से यहां वह चिंतित नज़र आती है। लेकिन प्रेमचंद ने इस चरित्र चित्रण का अधिक विस्तार नहीं किया है।

जबरा खेत पर हल्कू के साथ रहता है, उसकी स्वामीभक्ति, खेत नष्ट होते देखकर अपने स्वामी को सावधान करने की कोशिश, भौंक-भौंक कर जानवरों को भगाने की कोशिश और अंत में असफल हो जाने पर पस्त होकर लेट जाना, उसको काफी जीवंत पात्र बना देते हैं, लेकिन कहानी में विस्तार से हल्कू के चरित्र चित्रण की ही अभिव्यक्ति हुई है।

हल्कू का चरित्र चित्रण

हल्कू : हल्कू ‘पूस की रात’ का केंद्रीय चरित्र चित्रण है। वह गरीब किसान है। उसके पास कुछ खेती लायक ज़मीन है। ज़मीन कितनी है, इसका विवरण प्रेमचंद ने नहीं दिया है, लेकिन हल्कू की आर्थिक स्थिति से अनुमान लगा सकते हैं वह बहुत मामूली हैसियत का किसान है और खेती योग्य ज़मीन भी बहुत कम होगी।

ज़मीन पर जो उपज होती है, वह घर-परिवार के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए उसे कर्ज़ लेना पड़ता है। उसकी सारी उपज कर्ज़ चुकाने में चली जाती है, फिर भी वह ऋण से मुक्त नहीं हो पाता। इसलिए उसे मज़दूरी करनी पड़ती है, यद्यपि “मजूरी” से बचाए पैसे भी उसे महाजन को देने पड़ते हैं।

आर्थिक दीनता ने हल्कू के मन को दीन नहीं बनाया है लगातार शोषण ने उसे धीरे-धीरे किसानी के प्रति उदासीन अवश्य बना दिया है। हल्कू के स्वभाव का परिचय हमें कहानी की शुरुआत से ही लग जाता है।

जब सहना कर्ज़ माँगने आता है, तब उसकी पत्नी “मजूरी” से बचाए तीन रुपये देने को तैयार नहीं होती। जबकि हल्कू का दृष्टिकोण ज्यादा व्यावहारिक है। वह जानता है कि इससे बचने का कोई उपाय नहीं है।

अगर अभी वह रुपया नहीं देगा तो उसे गालियाँ और घुड़कियाँ सहनी पड़ेंगी। जब वह यही बात मुन्नी को कहता है तो मुन्नी कहती है “गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है” मुन्नी सूदखोर महाजनों और ज़मींदारों की ताकत को भले न जानती हो, हल्कू जानता है। वह जानता है कि इनसे बचने का कोई रास्ता नहीं है।

हल्कू एक समझदार किसान है। वह समाज के अंतर्विरोध को बखूबी समझता है। वह जानता है कि समाज में ऐसे लोग भी है जिनके पास हर तरह की सुख-सुविधाओं के साधन मौजूद हैं। लेकिन ये साधन उन लोगों के पास हैं जो स्वयं मेहनत नहीं करते है।

जो किसानों की मेहनत का लाभ उठाते हैं। लेकिन हल्कू इसके सही कारण को पहचानने में असमर्थ है। वह उसे “तकदीर की खूबी” समझता है। यानी कि जो दूसरों की मेहनत पर मजे कर रहे हैं, वे भाग्यशाली हैं और हम जो मेहनत करके भी भूखे मर रहे हैं।

हमारा भाग्य ही खराब है शोषण को भाग्य का खेल समझने के कारण हल्कू के पास शोषण से बचने का कोई अन्य रास्ता नहीं है। इसीलिए वह सोचता है कि अगर खेती में भी शोषण होना है तो ऐसी खेती से चिपके रहने का क्या लाभ? दूसरे, वह यह भी सोचता है कि जब लोग मेहनत न करके भी सुखी है

तो फिर मेहनत करते रहने का क्या मतलब? इस तरह लगातार शोषण उसकी चेतना को कृषि और श्रम दोनों से उदासीन बना देता है। हल्कू की यही मानसिकता खेत पर उसके सारे व्यवहार में व्यक्त होती है।

खेत पर वह अपने उपज की देखभाल करने के लिए आया है। उसके साथ उसका कुत्ता है, जिसके साथ उसका व्यवहार उसके हृदय की मानवीयता और पवित्रता को व्यक्त करता है। जैसा कि प्रेमचंद ने स्वयं कहानी में लिखा है, गरीबी ने हल्कू की आत्मा को आहत नहीं किया है।

इसलिए वह अपने को सर्दी से बचाने क लिए जितना चिंतित है, उतनी ही चिंता जबरा को लेकर भी है। हल्कू के खेत में जब नीलगायें आ जाती हैं, तब हल्कू उठकर नहीं जाता। पहले वह सोचता है कि जबरा के रहते कोई जानवर खेत में जा ही नहीं सकता। फिर वह उठता भी है तो दो-तीन कदम चलकर ठंड के बहाने से पुनः बैठ जाता है।

यह जानते हुए कि नीलगाये खेत चर रही हैं, वह चादर ओढ़कर सो जाता है। उसका यह व्यवहार निश्चय ही उसके पहले के व्यवहार से भिन्न है, लेकिन अगर हम कहानी के पहले भाग पर गौर करें तो हम आसानी से समझ सकते हैं कि इस व्यवहार का क्या कारण है? वस्तुतः हल्कू लगातार शोषण से परेशान होकर जिस मानसिकता से गुजर रहा है।

उसी का नतीजा है कि वह अपनी ही मेहनत से उपजाई फ़सल को बचाने की कोशिश नहीं करता। निश्चय ही हल्कू स्वयं इस व्यवहार के लिए उत्तरदायी नहीं है। परिस्थितियों ने उसे ऐसी स्थिति में पहुँचा दिया है। वे परिस्थितियाँ हैं, किसान का लगातार शोषण |

वह अशिक्षित है, धार्मिक आतंक और अंधविश्वास के कारण भाग्यवादी है, गरीब है, इसलिए वह कथित उच्चवर्गीय महाजनों और ज़मींदारों के चंगुल में फंसा हुआ है। शोषण के चक्र से वह कैसे मुक्त हो, यह नहीं जानता, इसलिए वह किसानी करने की लाचारी से ही मुक्त होने की सोचता है।

स्पष्ट ही उसकी मानसिकता किसान के भयावह शोषण को ही उजागर करती है, और इस अर्थ मे हल्कू की यह मानसिकता केवल हल्कू की मानसिकता नहीं रहती, गरीब मेहनतकश की मानसिकता बन जाती है। हल्कू का चरित्र चित्रण इसी अर्थ में एक वर्गीय चरित्र बन जाता है।

परिवेश

कहानी की रचना में देश-काल का बड़ा महत्व होता है। देश-काल से तात्पर्य है वह परिवेश जिसमें कहानी का पूरा घटनाचक्र घटित हुआ है। कहानी का यह कथ्य जिस परिवेश में घटित होता है, वह भी कथ्य को निर्धारित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दूसरे, कहानी का कथ्य जिस देश-काल से संबंधित होता है, उसके द्वारा हम उस युग की स्थितियों की अधिक यथार्थपरक पहचान भी करते हैं।

‘पूस की रात’ की रचना प्रेमचंद ने 1930 में की थी। उस समय भारत में अंग्रेजों का राज था। अंग्रेज़ी राज में भारत के किसानों की दशा अत्यंत दयनीय थी। ज़मींदारी प्रथा के कारण आम किसानों का भयंकर शोषण होता था। उनकी उपज का बड़ा हिस्सा ज़मींदार मालगुज़ारी के रूप में वसूल कर लेते थे।

इससे उनको अपने जीवनयापन के लिए महाजन से कर्जा लेना पड़ता था। लेकिन महाजन भी किसान की मजबूरी और उसकी अशिक्षा तथा पिछड़ेपन का लाभ उठाते थे। परिणाम यह होता था कि एक बार ऋण के चक्र में फंसने के बाद किसान की आसानी से मुक्ति नहीं होती थी। प्रेमचंद ने अपनी कई कहानियों में ग्रामीण जीवन के इसी यथार्थ को चरित्र चित्रण किया है।

इस कहानी में ग्राम्य जीवन का विस्तृत चित्रण नहीं है, लेकिन ग्रामीण जीवन की सारी विशेषताएँ इसमें अत्यंत जीवंत रूप में चित्रित हुई हैं। प्रेमचंद ग्राम्य वातावरण की सृष्टि करने के लिए सबसे पहले भाषा के स्तर पर परिवर्तन करते थे। ग्राम्य वातावरण से जुड़ी हुई कहानियों में तद्भव और देशज शब्दों का अधिक प्रयोग होता है

जैसे – कम्मल, डीलन, पूस, उपज, आले, धौंस आदि। प्रेमचंद ग्रामीण वातावरण को यथार्थपरक बनाने के लिए मुहावरों का भी प्रयोग करते हैं। जैसे – बाज आना, ठंडे हो जाना, चौपट होना आदि।

प्रेमचंद को ग्राम्य जीवन की सूक्ष्म पहचान थी। इस कहानी में उन्होंने अंधेरी रात में खेत पर हल्कू और जबरा के क्रियाकलापों का जो चित्रण किया है, उसमें उस वातावरण को प्रेमचंद ने अत्यंत सजीव बना दिया। पूस की अंधेरी रात में खेत का दृश्य देखिए : :

पूस की अंधेरी रात :— आकाश पर तारे भी ठिठुरते हुए मालूम होते थे। हल्कू अपने खेत के किनारे ऊख के पत्तों की एक छतरी के नीचे बांस के खटोले पर अपनी पुरानी गाढ़े की चादर ओढ़े पड़ा कांप रहा था।

इस दृश्य में आप पायेंगे कि प्रेमचंद ने खेत के वातावरण के सारे पक्षों को समेट लिया है। पूस की अंधेरी रात है। पौष के महीने में पड़ने वाली ठंड को व्यक्त करने के लिए वह अगला वाक्य लिखते हैं “आकाश पर तारे भी ठिठुरते हुए मालूम होते थे।” यह वाक्य ठंड की तल्खी को व्यक्त करता है और ठंड का कहानी के विकास से गहरा संबंध है।

इससे अगले वाक्य में उस स्थान का वर्णन है जहाँ उसे जाड़े की रात गुज़ारनी है। लेकिन यहाँ भी “पुरानी गाढ़े की चादर” का जिक्र महत्वपूर्ण है जिसे लपेटे वह बांस के खटोले पर बैठा कांप रहा है। इसी “चादर’ की जगह वह कंबल खरीदना चाहता था।

इसीलिए “पुरानी गाढ़े की चादर” ओढ़े कांपना हल्कू की आगे की क्रियाओं का आधार बन जाता है। प्रेमचंद केवल बाह्य परिवेश के चित्रण में ही सफल नहीं है वरन् पात्रों की मनोदशा के चित्रण में भी अत्यंत कुशल हैं।

चिलम पीकर हल्कू फिर लेटा और निश्चय करके लेटा कि चाहे कुछ हो अबकी सो जाऊँगा, पर एक ही क्षण में उसे हृदय में कंपन होने लगा। कभी इस करवट लेटता कभी उस करवट पर जाड़ा किसी पिशाच की भाँति उसकी छाती को दबाए हुए था।

ठंड के मारे हल्कू परेशान है। चादर सर्दी रोकने में असमर्थ है। तब वह चिलम पीता है, लेकिन चिलम भी उसकी कोई सहायता नहीं करती। उसके बाद की उसकी मनःस्थिति और बाह्य परिस्थिति के द्वंद्व का उपर्युक्त पंक्तियों में चरित्र चित्रण किया है।

हल्कू चिलम पीकर निश्चय करता है कि अब वह लेट जाए, लेकिन सर्दी से वह कांपने लगता है। तब वह इधरउधर करवट बदलता है लेकिन उससे भी उसे आराम नहीं मिलता। ऐसे में प्रेमचंद सर्दी की।

साहित्य का आस्वादन

तीव्रता को व्यक्त करने के लिए एक स्थिति का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं “जाड़ा किसी पिशाच की भांति उसकी छाती को दबाए हुए था।” यहाँ पिशाच द्वारा छाती को दबाना जिस स्थिति को व्यक्त करता है उससे ठंड की तीव्रता पाठक के सामने सहज ही स्पष्ट हो जाती है।

प्रेमचंद ने केवल हल्कू की क्रियाओं का ही नहीं जबरा की क्रियाओं का भी अत्यंत सजीव और यथार्थ चरित्र चित्रण किया है।

सहसा जबरा ने किसी जानवर की आहट पाई। इस विशेष आत्मीयता ने उसमें एक नई स्फूर्ति पैदा कर दी थी, जो हवा के ठंडे झोंकों को तुच्छ समझती थी। वह झपटकर उठा और छपरी के बाहर आकर मूंकने लगा।

हल्कू ने कई बार उसे चुमकारकर बुलाया, पर वह उसके पास न आया। हार में चारों तरफ दौड़-धूकता रहा। एक क्षण के लिए आ भी जाता, तो तुरंत ही फिर दौड़ता। कर्त्तव्य उसके हृदय मे अरमान की भांति उछल रहा था।

यहाँ सिर्फ कुत्ते की क्रियाओं का ही वर्णन नहीं है, वरन् उसकी हल्कू के प्रति कर्त्तव्य-भावना का भी चित्रण किया गया है और दोनों चीजें उपर्युक्त अंश में इतने आत्मीय रूप में व्यक्त हुई हैं कि कुत्ता, कुत्ता नहीं वरन् कहानी का जीवंत पात्र बन कर सामने आया है।

यह भी पढ़े :–

  1. पूस की रात कहानी का सारांश |
  2. पूस की रात कहानी का सारांश | प्रेमचंद |
  3. गोदान में वर्णित जाति-सामंती व्यवस्था टिप्पणी दीजिए |

 

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