हिंदी भाषा का विकास और उत्पत्ति कैसे हुई? जाने
हिंदी भाषा का विकास
Table of Contents
हिंदी भाषा का विकास
हिंदी के विकास की पूर्व पृष्ठभूमि में अभी तक यह बताया गया है कि विश्व की भाषाओं के परिवार में हिंदी का किस प्रकार भारोपीय— सतम् अर्थात् भारत-ईरानी > प्राचिन भारतीय आर्यभाषा – संस्कृत – मध्यकालीन आर्यभाषा (पालि) – प्राकृत – (अपभ्रंश) से व्युत्पत्तिगत संबंध है तथा यह शौरसेनी + मागधी + अद्धमागधी अपभ्रंश से विकसित हुई पाँच उपभाषाओं एवं बाईस के संकुल के रूप में स्थापित है।
इसके अतिरिक्त यह भी बतायागया है कि हिंदी की खड़ी बोली बांगरू ब्रज उर्दू आदि बोलियों के सहयोग से हिंदी का एक मानक रूप में विकसित हुआ है जो ऐतिहासिक कारणों से पिछले 200 वर्षों में विश्व की भाषाएं मानचित्र में अपना अंतरराष्ट्रीय स्थान भी बना चुका है। हिंदी का यही रूप भारत की राष्ट्रभाषा एवं भारत संघ एवं 10 राज्यों की राजभाषा के रूप में पत्रकारिता एवं शिक्षा के माध्यम के रूप में मान्य है।
अब विचारणीय प्रश्न यह है कि हिंदी का उद्भव शौरसेनी, मागधी, अर्द्धमागधी, से होने के बाद पिछले 1000 वर्षों में इसका विकास किस प्रकार हुआ है। हिंदी भाषा के विकास के इस 1000 वर्ष के इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया गया है प्रारंभिक काल मध्यकाल और आधुनिक काल।
![हिंदी भाषा का विकास](https://rajasthanresult.in/wp-content/uploads/2021/06/images-7-1.jpeg)
हिंदी भाषा का विकास
प्रारंभिक काल (1000 ई. से 1500 ई.)
हिंदी के जन्मकाल का निर्धारण
मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषाओं की अंतिम कड़ी अपभ्रंश से आधुनिक आर्यभाषाओं हिंदी पंजाबी गुजराती बंगला मराठी आदि का जन्म कब हुआ और उसमें भी हिंदी का जन्म काल क्या रहा इस पर विद्वानों के अलग-अलग विचार तर्क और प्रमाण हैं। हिंदी के उद्भव के संबंध में रामचंद्र शुक्ल के अनुसार अपभ्रंश या प्राकृत भाषा हिंदी के पदों का सबसे पुराना पता तांत्रिक और योगमार्गी बौद्धों की सांप्रदायिक रचनाओं के भीतर विक्रम की सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में लगता है।
“ मुंज और भोज के समयमैं तो ऐसी अपभ्रंश या पुरानी हिंदी का पूरा प्रचार शुद्ध साहित्य काव्य रचनाओं में भी पाया जाता है।”
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार हेमचंद्राचार्य ने दो प्रकार की अपभ्रंश भाषाओं की चर्चा की है। दूसरी श्रेणी की भाषाओं को हेमचंद्र ने ग्राम्य में कहा है। वस्तुतः यही भाषा आगे चलकर आधुनिक देशी भाषाओं के रूप में विकसित हुई |
धीरेंद्र वर्मा के अनुसार 1000 ईसवी के बाद मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा के अंतिम रूप अपभ्रंश ने धीरे-धीरे बदलकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का रूप ग्रहण कर लिया।
चंद्रधर शर्मा गुलेरी के अनुसार सातवीं से 11 वीं शताब्दी तक अपभ्रंश की प्रधानता रही | फिर वह पुरानी हिंदी में परिणत हो गई।
भोलानाथ तिवारी कहते हैं यूं तो हिंदी के कुछ रूप पाली में भी मिलने लगते हैं प्राकृत में उनकी संख्या और भी बढ़ जाती है तथा अपभ्रंश में उनमें और भी वृद्धि हो गई है किंतु सब मिलाकर इन का प्रतिशत कितना कम है कि 1000 ईसवी के पूर्व हिंदी का उद्भव नहीं माना जा सकता।
इस तरह यदि लगभग 1150 ईसवी के आसपास में हिंदी साहित्य मिले जो भी उस भाषा का आरंभ 1000 ईसवी के आसपास ही मानना पड़ेगा।
उपर्युक्त मतों से यह स्पष्ट है कि भाषा का जन्म अचानक नहीं होता वह एक सतत विकास के जरिए अपना रूप प्राप्त करती है या रूप होती है हिंदी के लक्षण पाली साहित्य में भले ही मिलने लगते हो और प्राकृतिक तथा अपभ्रंश में क्रमशः बढ़ते गए हो किंतु हिंदी की अपनी विशेषताओं का वह अनुपात 1000 ईसवी के आसपास इतना बड़ा प्रतीत होता है कि उसे अपभ्रंश से भिन्न हिंदी कहा जा सकता है।
भाषा विकास के प्रवाह मैं जन भाषा आगे चलती है, परिवर्तन पहले जन भाषा में होने लगते हैं उन परिवर्तनों के स्थाई होने पर फिर उनका प्रयोग साहित्य में होने लगता है हिंदी के विकास में यदि सन 11 से 50 ईसवी के आसपास लिखे साहित्य में अपभ्रंश का अस्त होना और हिंदी का उदय होना झलकता है तो जन भाषा में यह परिवर्तन 1000 ईसवी के आसपास ही हो गए होंगे।
मध्यकाल ( 1500 ई. से 1800 ई.)
यह काल हिंदी प्रदेश में राजनीतिक दृष्टि से मुगलों एवं उनके अधीन सामंतों के शासनकाल का है तथा सांस्कृतिक एवं साहित्यिक दृष्टि से भक्ति और रीतिपरक रचनाओं का है। इस युग में हिंदी की अवधि बृज तथा खड़ी बोली में अधिक रचनाएं लिखी गई। अवधि में मुल्ला दाऊद जायसी कुतुबन तुलसीदास ब्रज में सूरदास नंददास तुलसीदास केशव बिहारी रसखान घनानंद खड़ी बोली तथा मिश्रित भाषा में कबीर रहीम आलम नागरी दास रैदास मीराबाई और उर्दू में वली , बुरहानुद्दीन , नुसरती, कुली, कुतुबशाह , आदि श्रेष्ठ साहित्यकारों की रचनाओं ने हिंदी के मध्य काल को इतना समृद्ध किया है कि वह हिंदी साहित्य का उत्कृष्ट काल बन गया है तथा इसी के फलस्वरूप हिंदी आधुनिक काल में राष्ट्रभाषा का पद प्राप्त कर सकी है।
आधुनिक काल (1800 ई. से अब तक)
हिंदी के विकास की दृष्टि से आधुनिक काल बहुत महत्वपूर्ण है यद्यपि भारत की सांस्कृतिक एकता को व्यक्त करने वाली भाषा के रूप में तो हिंदी आधुनिक युग से पूर्व ही प्रतिष्ठित हो चली थी किंतु आधुनिक काल में अट्ठारह सौ ईसवी के बाद पहले ब्रिटिश शासन के प्रसार के फल स्वरुप और उसके बाद उसके विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष से भारत की सांस्कृतिक राजनीतिक प्रशासनिक अस्मिता को प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत की अन्य भाषाओं की तुलना में हिंदी एक अधिक सामर्थ्य वन एवं व्यवहारिक भाषा के रूप में स्थापित हुई इसलिए आधुनिक युग हिंदी के विकास में क्रांतिकारी परिवर्तन लाता है।
अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद हिंदी ने विगत 200 वर्षों में जितना विकास किया है वह विश्व के भाषा विकास में बहुत महत्वपूर्ण है इस युग में जिन जिन रचनाकारों ने अपना योगदान किया है उसकी सूची बहुत लंबी है। साहित्य के क्षेत्र में भारतेंदु युग से ही हिंदी में भाषा व्यवहार के हर क्षेत्र में अपना विकास करना प्रारंभ किया तथा वह द्वेदी काल छायावाद प्रगतिवाद प्रयोगवाद नई कविता से गुजरती हुई आज तक पहुंची है साहित्य पत्रकारिता अध्ययन अध्यापन शोध राज कार्य आदि के क्षेत्र में इसने बहुत प्रगति की है हिंदी भाषियों और अहिंदी भाषियों दोनों ने उनके विकास को समृद्ध किया है।
Note:— हमने यह जानकारी इग्नू की हिंदी पुस्तक वह वीएमओयू की हिंदी पुस्तक से जुटाई है।
यह भी पढ़े👇
हिंदी भाषा का विकास – अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। और हमारे फेसबुक पेज को फॉलो करें। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।। धन्यवाद 🙏 ।।
अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇
Recent Comments