हीलीबोन की बत्तखें कहानी की संवेदना स्पष्ट कीजिए | अज्ञेय |
हीलीबोन की बत्तखें कहानी की संवेदना :– प्रेमचंदोत्तर कहानीकारों में जिस कहानीकार ने अपनी प्रतिभा से कहानी जगत को सहसा आलोकित किया उनमें अज्ञेय अग्रगण्य है, इन्होंने अपनी कहानियों में मध्यवर्ग अभिजात सामाजिक जीवन, क्रांतिकारियों का जीवन स्त्री पुरुष के नैतिक संबंध, पर्यटक जीवन आदि को कथ्य बताया।
कहानियों में देश-काल सामाजिक वातावरण के स्थान पर व्यक्ति के चरित्र की गहन संवेदना को अभिव्यक्ति प्रमुखता से मिली है। ‘हीली बोन की बत्तखें’ अज्ञेय की एक बड़ी महत्त्वपूर्ण कहानी है।
यह कहानी इनके ‘जयदोल’ (1951) संग्रह में संकलित है। इस कहानी का रचनाकाल 1947 और रचनास्थल इलाहाबाद उल्लेखित है। इस कहानी की मूल संवेदना पर बात करने से पूर्व हिंदी कहानी के विकास पर एक विहंगम दृष्टिपात करें तो हम पाते हैं कि शुरूआती दौर की कहानियों में दैवी संयोगों और दया, ममता, त्याग, बलिदान, करुणा जैसे उदात्त भावों पर बल दिया जाता था।
फलस्वरूप कहानी किसी आदर्श बिंदु पर पहुँचकर समाप्त हो जाती थी। जैसे- ‘रानी केतकी की कहानी’, ‘राजा भोज का सपना’ आदि। परंतु बाद में कहानी विधा के अनेकविध प्रचार-प्रसार के फलस्वरूप कहानी की संवेदनाओं में उसी रूप में विस्तार हुआ। एक महत्त्वपूर्ण बात यह स्पष्ट होती है कि हिंदी कहानी संवेदनात्मक रूप से आदर्श से यथार्थ की ओर क्रमशः उन्मुख होती जाती है।
अज्ञेय ने अपनी इस कहानी में यथार्थ के सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक पहलू को संजोया है। अज्ञेय 1943 से 1946 तक सेना में रहे। 1946 के शुरूआत में ही अज्ञेय ने सेना की नौकरी छोड़ दी।
सन् 1941 से 1946 के मध्य अज्ञेय संभवतः एक भी कहानी नहीं लिख पाए और फिर 1947 में, अपने इलाहाबाद प्रवास में उन्होंने एक साल के भीतर सात महत्त्वपूर्ण कहानियाँ- ‘होली-बोन की बत्तखें’, ‘मेजर चौधरी की वापसी’, ‘लेटरबॉक्स’, ‘शरणदाता’, ‘मुस्लिम-मुस्लिम भाई-भाई’, ‘रमन्ते तत्र देवता’, ‘बदला’ आदि लिखी थीं, जिनमें से प्रथम दो सैनिक जीवन संदर्भो पर और अन्तिम पाँच भारत-विभाजन के समय हिन्दू-मुस्लिम दंगों की विभिन्न मनोदशाओं से सम्बद्ध हैं।
अपनी सैनिक जीवन से सम्बद्ध कहानियों को अज्ञेय ने अपनी ‘तीसरे खेप की कहानियाँ’ बताया है जो सैनिक जीवन के साथ-साथ उन प्रदेशों के जीवन और समाज से सम्बद्ध हैं।
हीलीबोन की बत्तखें कहानी की संवेदना
इस प्रकार इस कहानी की रचना अज्ञेय ने अपने सैनिक जीवन के दौरान किसी घटना के आधार पर की है। कहानी की नायिका ‘हीली’ असम क्षेत्र की ‘खासिया’ जाति की पूर्व-प्रधान है। वह अपने पिता की तीन पुत्रियों में से सबसे बड़ी और सबसे सुंदर है। खासी जाति में मातृसत्ता होती है यानी समाज में स्त्री की प्रधानता होती है। इस जाति में स्त्री ‘अनुशासन में नहीं चलती, बल्कि अनुशासन को चलाती है।’
हीली की दोनों छोटी बहनों का विवाह हो चुका है। परंतु हीली ने विवाह नहीं किया, वह अकेली रहती है। हीली ने भी जीवन में प्रेम पाया था, उसने भी प्रेम किया था।
परंतु वह अपने प्रेमी को अपना जीवन साथी नहीं बना पाई। अपने अकेलेपन की पूर्ति के लिए वह बत्तखें पालती है। इन बत्तखों के अण्डे बेचकर वह अपना जीवन चलाती है। हीली को अपनी बत्तखों से बहुत अधिक लगाव है। इन्हें वह अपना सब कुछ मानती है। हीली का जीवन ठीक-ठाक इन बत्तखों के सहारे चल रहा था। परंतु कुछ दिनों से हीली की बत्तखों का शिकार एक लोमड़ पास के जंगल से आकर करने लगा।
एक सुबह हीली जगकर अपने घर में झाडू आदि लगा रही थी तब उसे पता चला कि आज फिर उसकी एक बत्तख और मारी गई है। इससे उसके मुख से एक हल्की-सी चीख निकल गई, जिसे सुनकर वहाँ से गुजर रहा कैप्टन दयाल (एक फौजी) उसकी सहायता के लिए उसके पास आया। तब हीली अपनी समस्या कैप्टन दयाल को बताती है।
वह स्वेच्छा से लोमड़ का शिकार करने की इच्छा ज़ाहिर करता है। वह अपनी पूरी तैयारी के साथ लोमड़ के शिकार के लिए रात को छिप कर बैठता है। कैप्टन दयाल अपनी बंदूक की गोली से लोमड़ को घायल कर देता है।
बह होते ही कैप्टन दयाल और हीली शिकार यानी लोमड़ को ढूँढने निकलते हैं। घने जंगल के बीच कैप्टन दयाल और हीली देखते हैं कि खोह में नर लोमड़ी मृत पड़ी है। मादा लोमड़ी उस पर झुकी हुई है। लोमड़ी के तीन बच्चे अपनी माँ के पैरों में कुनमुना रहे थे। लोमड़ी परिवार में किसी को पता नहीं चला कि शत्रु (हीली और कैप्टन दयाल) इस घरेलू दृश्य को देख रहे हैं।
हीली और कैप्टन दयाल दोनों इस दृश्य को देखते हैं परंतु दोनों की प्रतिक्रियाएँ परस्पर भिन्न हैं। कैप्टन दयाल अपनी शिकारी वृत्ति के वशीभूत लोमड़ी को भी मारना चाहते हैं, परन्तु हीली की प्रतिक्रिया कैप्टन दयाल से एकदम भिन्न और मानवीय है। वह सोचती है कि लोमड़ के मर जाने के फलस्वरूप अब उसका परिवार बेसहारा और अनाथ हो गया।
वह वापस अपने घर आती है और अपनी सभी बत्तखों को अपने हाथों से मार डालती है। कैप्टन दयाल वापस आकर हीली से बात करना चाहता है परंतु वह कैप्टन दयाल को ‘दूर रहो हत्यारे’ कहकर झिड़क देती है। कहानी यहाँ समाप्त हो जाती है।
इस कहानी में अज्ञेय ने एक सामान्य सी यथार्थ घटना के माध्यम से एक स्त्री की मन:स्थिति, उसके आचरण को प्रस्तुत किया है। ‘हीली का वर्षों से सुप्त अकेलापन’ और लोमड़ी के भविष्य की कल्पना का क्षणभर में एक बिंदु पर मिलना और लोमड़ की मृत्यु के कार्य-कारण शृंखला में कैप्टन दयाल व बत्तखों को उत्तरदायी मानना आदि तथ्य हीली की मानसिकता को हमारे समक्ष खोल कर व्यक्त कर देते हैं।
यहाँ जब हम इस कहानी की संवेदना पर बात करते हैं- तो एक साथ कई प्रश्न उठते हैं जैसे कि हीली ने बत्तखों को क्यों मारा? क्या वह स्वयं भी अपराधबोध से ग्रस्त थी? क्या वह प्रायश्चित के रूप में अपनी सभी बत्तखों को मार डालती है। ऐसे तमाम प्रश्न पाठक को उद्वेलित करते हैं।
यदि हम गहराई से देखें तो स्पष्ट होगा कि हीली केवल परिवार में ही नहीं, बल्कि पूरे गाँव में अकेली है। उसके इस अकेलेपन का सहारा व साथी उसकी ये बत्तखें ही हैं। उसका जीवनयापन भी इन्हीं बत्तखों के सहारे होता है। हीली का संपूर्ण स्नेह बत्तखों पर ही बरसता है।
परंतु जब लोमड़ की तलाश में वह उसकी खोह तक कैप्टन दयाल के साथ जाती है, तो उसे स्नेह और वात्सल्य से परिपूर्ण एक परिवार के दर्शन होते हैं, जिसके मर्म से वह अभी तक अनभिज्ञ थी। वास्तव में, लोमड़ की मृत्यु के अवसर पर लोमड़ परिवार को देखकर हीली महसूस करती है कि दरअसल बत्तखें उसकी संतान और परिवार का स्थान नहीं ले सकतीं।
वह कैप्टन दयाल को हत्यारा कहती है क्योंकि लोमड़ की हत्या करके उसने लोमड़ी को भी हीली की भाँति अकेला और बेसहारा कर दिया। इस अकेलेपन के दर्द को हीली से अच्छा भला कौन अनुभव कर सकता है?
अकेलेपन की यातना को वह पूरी समग्रता से जी रही है। इसी कारण लोमड़ के शव के निकट मंडराने वाली लोमड़ी की असहायता को, उसकी वेदना को हीली अपने भीतर महसूस करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो, पिछले कई वर्षों से सुप्त उसका अकेलापन और लोमड़ी का भविष्य क्षण भर में एक बिन्दु पर आ कर जुड़ जाते हैं।
लोमड़ की मृत्यु के कारण वह अनाथ हो गई। लोमड़ी के बच्चों को देखने पर हीली में स्थित वात्सल्य जाग उठा और वह अप्रकृतिस्थ हो उठती है। उसका मन तेजी से सोचने लगता है कि लोमड़ी और उसके बच्चों की इस असहाय अवस्था के लिए जिम्मेदार कौन हैं ‘कैप्टन दयाल’ और कैप्टन दयाल ने लोमड़ को क्यों मारा क्योंकि मैंने इजाजत दी।
मैंने इजाजत क्यों दी? क्योंकि मुझे अपनी बत्तखों को बचाना था। बत्तखों के कारण ही आज लोमड़ी और उसके बच्चों की यह दुर्दशा हो गई। इसका अर्थ बत्तखें जब तक रहेंगी तब तक लोमड़ इस प्रकार मारे जाएँगे, लोमड़ के बच्चे अनाथ हो जाएँगे, इसलिए बत्तखों को ही काट दिया जाये। इसी कारण वह बत्तखों को काट देती है। यह सब इतनी तेजी से हुआ है कि इसे रोकना सम्भव भी नहीं था।
उसके इस विक्षिप्त व्यवहार के मूल में केवल भावुकता है, बेवकूफी है- ऐसा निष्कर्ष दिया जा सकता है। वास्तव में, यह हीली की विक्षिप्तिता या बेवकूफी नहीं है, अपितु आज तक वह जिस जिन्दगी को जी रही थी उसकी वह शोकांतिका है। अतृप्त आकांक्षाएँ, इच्छाएँ धीरे-धीरे इकट्ठी होती जाती है, अधिक सघन हो जाती हैं , , “।
और किसी विशेष प्रसंग घटना या निमित्त से अचानक अभिव्यक्त हो जाती है। यह अभिव्यक्ति तर्कसंगत नहीं होती। अपितु भीतर छिपी अतृप्त आकांक्षा और छटपटाहट का यह दर्दनाक विस्फोट होता है। इसी कारण ‘हीली’ के बत्तखों को काट फेंकने के मूल में उसका उलझा हुआ व्यक्तित्व और वात्सल्य की तलाश में भटकता मन है।
लोमड़ का शव, लोमड़ी की असहाय आँखें और लोमड़ के बच्चों का कुनमुनाना- इस दृश्य से हीली के अन्तरमन में स्थित वाल्सल्य का ज्वालामुखी अचानक फूट पड़ता और इसी मनोदशा में हीली अपनी बत्तखों को काट फेंकती है और कैप्टन दयाल को हत्यारा कहती है।
इस प्रकार समग्रतः हम कह सकते हैं कि इस कहानी की संवेदना पूर्णतः मानवीय एवं मानवतावादी है। वे प्रकट और घोषित रूप से आहत अपितु मानवीय संवेदन और मानवीय मूल्यों के आग्रही कहानीकार हैं। उनकी रचना का कथ्य उद्घाटित नहीं आविष्कृत होता है, जो कि पूर्णतः उन्हीं का होता।। हीलीबोन की बत्तखें कहानी हीलीबोन की बत्तखें कहानी हीलीबोन की बत्तखें कहानी
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