हीली बोन की बत्तखें कहानी का सार लिखिए |
हीली बोन की बत्तखें कहानी अज्ञेय के ‘जयदोल’ (1951) संग्रह में प्रकाशित हुई। तब इसमें ग्यारह कहानियाँ थीं। परंतु 1957 में इसके पुनः प्रकाशन में ‘विपथगा’ संग्रह की एक कहानी ‘रोज़’ को ‘गैंग्रीन’ नाम से रख दिया गया।
इस प्रकार ‘जयदोल’ संग्रह में कुल बारह कहानियाँ- पठार का धीरज, वे दूसरे, नीली हँसी, नागा पर्वत की एक घटना, मैजर चौधरी की वापसी, साँप, बसंत, हीली बोन की बत्तखें, कविप्रिया, गैंग्रीन, आदम की डायरी और जयदोल है।
हीली बोन की बत्तखें
यहाँ हीली बोन की बत्तखें कहानी का सार इस प्रकार है (एक सुबह) हीली-बोन अपने घर में झाडू लगा कर खड़ी हुई तो अचानक उसकी आँखें गीली लाल मिट्टी वाले काई जमे फर्श पर गईं। उसके बुझे हुए चेहरे पर अचानक कठोरता आ गई। उसके मुख से एक धीमी-सी चीख निकली।
इसके साथ ही वह तेजी से अपनी बत्तखों के बाड़े में पहुँची। हीली के घर के पीछे से गुजरने वाले व्यक्ति ने हीली की वह धीमी चीख सुनी और वह हीली के पास आ गया। उसने हीली को ‘खू-ब्लाई’ जिसका मतलब होता है ‘राम राम’ यानी अभिवादन किया। हीली के लिए वह व्यक्ति अपरिचित था। उस आगंतुक व्यक्ति ने हीली की मदद करने की मंशा जाहिर की।
हीली ने भी कहा- अच्छा, आइए, देखिए। आगंतुक ने हीली की बत्तखों के बाड़े को देखा, जिसमें आठ-दस बत्तखें थीं। फर्श पर लहू और पंख बिखरे हुए थे। आगंतुक ने स्थिति का जायजा लेकर, इसका जिम्मेदार लोमड़ी को ठहराया। इस पर हीली ने बताया कि उसके बाड़े में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ परंतु अब दूसरे-तीसरे दिन उसकी एक बत्तख मारी जाती है।
आगंतुक ने हीली की बातें सुनकर अपने विषय में बताया कि वह एक फौजी है, यहाँ छुट्टियाँ बिताने आया है और शिकार का शौकीन है। यदि हीली अनुमति दे तो वह यहाँ डाकू की घात में बैठे। हीली अपनी सहमति उस शिकारी को दे देती देती है। बातचीत के दौरान आगंतुक हीली के मकान को बहुत साफ और सुंदर बताता है।
इस पर हीली का जवाब होता है, “हाँ, कोई कचरा फैलाने वाला जो नहीं है। मैं यहाँ अकेली रहती हूँ।” इस पर आगंतुक बात बदलता है और रात को अपने आने की बात पक्की करता है। इसके बाद आगंतुक कैप्टन दयाल विदा लेता है और अपने रास्ते चला जाता है।
हीली बोन शाम के समय पर्वतीय सौंदर्य को देखकर उदास हो जाती है। वह अपने विगत जीवन के विषय में स्मरण करती है कि वह मांडलिक राज्य के दीवान की पुत्री थी। वह अपने पिता की तीन संतानों में सबसे बड़ी थी और अपनी दोनों छोटी बहनों से अधिक सुंदर भी थी। वह जिस जाति से थी।
उसमें स्त्री की प्रधानता थी। स्त्री अनुशासन में चलती नहीं, बल्कि अनुशासन को चलाती है। वह भी अपने समाज में होने वाले सांस्कृतिक उत्सव ‘नांगथलेम’ की अधिष्ठात्री थी।
खासिया जाति के इस उत्सव में वह प्रमुख भूमिका निभाती थी। नृत्य मंडली का नेतृत्व हीली ही करती थी। हीली अपने अतीत पर चिंतन करते हुए स्मरण करती है कि जब वह आयु के चौंतीसवें वर्ष में थी तब उसकी दोनों बहनें विवाह करके अपने-अपने परिवार की हो गईं।
पिता भी इस लोक को छोड़कर स्वर्गवासी हो गए और तब स्त्री-सत्ता के नियमानुसार पिता की सारी सम्पत्ति सबसे छोटी बेटी को मिल गई। हीली के पास एक बंगलेनुमा छोटा-सा घर और बगीचा है। हीली अपने इस घर में ही नहीं बल्कि पूरे गाँव में अकेली रहती है। लोग कहते थे कि ‘हीली सुंदर है, पर स्त्री नहीं। वह बाँबी क्या, जिसमें साँप नहीं बसता?’ हीली अपने विषय में और अधिक नहीं सोचना चाहती।
उसने भी प्रेम पाया था और भावी जीवन के सपने देखे थे। परंतु अब वह अकेले ही रहती है और खासिया प्रदेश में अब वह केवल अपनी सुंदर बत्तखों के लिए जानी जाती है। वह लोमड़ी के उपाय के विषय में सोचती है। वह सोचती है कि कैप्टन दयाल ज़रूर उस लोमड़ी को मार देगा। जब हीली इन्हीं विचारों में डूबी हुई थी, तभी कैप्टन दयाल के आने से हीली की विचार मग्नता की स्थिति भंग हुई।
यानी उसका अपने जीवन की विगत यादों से ध्यान हटा। हीली ने कैप्टन दयाल से खाना खाने के बारे में पूछा और बताया कि उनके आराम के लिए कमरा तैयार है। कैप्टन दयाल ने हीली का धन्यवाद करते हुए मौका यानी आसपास की जगह को देखने की इच्छा ज़ाहिर की।
रात के दो-ढाई बजे बंदूक चलने की आवाज़ से हीली की नींद खुल गई, परंतु वह उठी नहीं। उसने सोचा कि लोमड़ी ज़रूर मर गई होगी, यह सोचकर वह सो गई। वह सुबह जल्दी नींद से उठी तो उसने देखा कि कैप्टन दयाल जाने की तैयारी कर रहे हैं। कैप्टन ने हीली को बताया कि “शिकार घायल तो हो गया है, परंतु वह कहीं और निकल गया है। मैं शिकार को खोजने जा रहा हूँ।”
हीली भी कैप्टन दयाल के साथ चल पड़ी। वे शिकार के रक्त के चिह्नों का पीछा करते-करते काफी आगे निकल गए। उन्होंने आगे जरैत की झाड़ियों के पीछे एक झरना देखा। उस झरने को हीली ने अब से पहले कभी नहीं देखा था। रक्त के चिह्न आगे झाड़ियों के झुरमुट तक आकर दिखने बंद हो गए। कैप्टन दयाल और हीली झाड़ियों के बीच से रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ते गए।
वहाँ उन्हें खून के चिह्न फिर दिखाई देने लगे। हीली ने हवा की गंध लेकर कैप्टन दयाल से कहा- यह तो जानवर की गंध है। उन्होंने आगे बढ़कर देखा तो उस अंधकार में एक साथ कई जोड़े आँखें अंगारों की तरह चमक रही थीं। हीली ने नर लोमड़ी का मृत शरीर देखा, जिस पर मादा लोमड़ी झुकी हुई थी और तीन छोटे-छोटे लोमड़ी के बच्चे कुनमुना रहे थे। लोमड़ी के बच्चे लोमड़ी के थनों को खोज रहे थे। उस मादा लोमड़ी और उसके बच्चों को पता ही नहीं चला कि शत्रु (कैप्टन दयाल और हीली) उन्हें देख रहे हैं।
कैप्टन दयाल लोमड़ी को भी दोषी मानते हुए उसे भी गोली मारकर, उसके बच्चों को पालने की बात कहता है। इस बात के प्रत्युत्तर में कोई उत्तर न पाकर पीछे देखता है तो वहाँ से हीली जा चुकी है। कैप्टन दयाल हीली के इस व्यवहार से थोड़ा खिन्न होता है। लोमड़ी के परिवार को देखता है।
थोड़ी देर तक और फिर जिस रास्ते से वे दोनों यहाँ आए थे, उसी से वापस आने लगा। हीली एक उन्माद में अपने घर दौड़ती हुई आई और सीधी अपनी बत्तखों के बाड़े में गई। जैसे ही वह दौड़कर आई थी उससे पहले तो उसकी बत्तखें चारों ओर फैल गई। फिर धीरे-धीरे हीली के पास आ गई। वह एक शून्य दृष्टि से बत्तखों को देखती रही।
जैसे ही एक बत्तख हीली के हाथ को ठेलने लगी उसने कसकर बत्तख की गर्दन पकड़ी और उसे काट डाला। हीली ने एक-एक कर अपनी सभी ग्यारह बत्तखों के गले काट दिए। फिर हीली संभलते हुए वहीं खंभे के सहारे बैठ गई।
कैप्टन दयाल ने अचल मूर्ति की भाँति हीली को बैठे देखा और पास ही रक्तरंजित पड़ी डाओ (हथियार) को। कैप्टन दयाल ने हीली से बात करनी चाही। परंतु हीली तीखेपन से कैप्टन को कहती है- दूर रहो, हत्यारे। कैप्टन दयाल हीली के इस अप्रत्याशित व्यवहार से अवाक् रह गया। उसे हीली एक पर्वत के सौंदर्य के समान लगी। पर्वत जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होता है परन्तु वह जड़ एक ही स्थान पर स्थिर रहता है।
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