73वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनुसार पंचायती राज के कार्य
73वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनुसार पंचायती राज के कार्य :— जैसा कि अशोक मेहता समिति ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है कि सत्तर के दशक में पंचायती राज व्यवस्था मृत प्राय होने लगी थी, इसे पुनः जीवित करने का प्रयत्न राजीव गांधी ने 64वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से किया था, लेकिन राज्य सभा में समुचित समर्थन नहीं जुटा पाने के फलस्वरूप राजीव गांधी का यह प्रयास विफल ही रहा।
73वें संविधान संशोधन
नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में अप्रैल 1992 में 73वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हो सका। इस संशोधन द्वारा भारतीय संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़कर पंचायती राज संस्थाओं को सौंपे जाने वाले कार्यों की सूची जोड़ी गई।
इस सूची में से कुल 29 कार्य पंचायती राज को राज्य सरकारों द्वारा सौंपे जाने की अपेक्षा की गई है। इन कार्यों को राज्य द्वारा सौंपा जाना अनिवार्य नहीं है, यह राज्यों की स्वेच्छा पर छोड़ा गया है। इस 11वीं अनुसूची में दर्शाये कार्य अग्रलिखित है:
1. कृषि जिसके अंतर्गत कृषि विस्तार भी है।
2. भूमि विकास, भूमि सुधार का कार्यान्वयन, चकबन्दी और भूमि संरक्षण
3. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन और जल ग्रहण क्षेत्र का विकास |
4. पशुपालन, डेयरी उद्योग एवं कुक्कट-पालन |
5. मत्स्य उद्योग
6. सामाजिक वानिकी एवं फार्म वानिकी ।
7. लघु वन उपज
8. लघु उद्योग, जिनके अन्तर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी है।
9. खादी ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग
10. ग्रामीण आवासन।
11. पेयजल।
12. ईंधन और चारा ।
13. सड़कें, पुलिया, पुल, नौकायन फेरी, जलमार्ग और अन्य संचार साधन ।
14. ग्रामीण विद्युतीकरण, जिसके अन्तर्गत विद्युत का वितरण भी है।
15. अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत ।
16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम |
17. शिक्षा, जिसके अन्तर्गत प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय भी है। |
18. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा
19. प्रौद और अनौपचारिक शिक्षा।
20. पुस्तकालय।
21. सांस्कृतिक क्रिया कलाप।
22. बाजार और मेले ।
23. स्वास्थ्य और स्वच्छता जिनके अन्तर्गत अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और औषधालय भी है।
24, परिवार कल्याण |
25. महिला और बाल विकास ।
26. समाज कल्याण, जिसके अन्तर्गत विकलांगों और मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों का कल्याण भी है।
27. दुर्बल वर्गों का और विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का कल्याण |
28. सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
29. सामुदायिक परिसम्पत्तियों का अनुरक्षण
सारांश
इस तरह भारत जैसे विशाल देश में प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण की दृष्टि से पंचायती राज व्यवस्था को अपनाया गया था। इस व्यवस्था के माध्यम से प्रशासन में जन सहभागिता बढाने तथा नियोजन स्थानीय आवश्यकता के अनुरूप करने तथा उद्देशित लक्ष्यों को प्रभावी रूप में प्राप्त करने का प्रयास किया गया।
यद्यपि प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण का विषय भारत के लिए कुछ नया नहीं है परन्तु बलवंत राय मेहता तथा अशोक मेहता समिति की सिफारिश अनुसार पंचायती राज की जो व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया गया उसके कारण निश्चित ही अधिकांशतः गाँवों में रहने वाले भारतीय जनता को प्रशासन में सहभागिता का अवसर प्राप्त हुआ है।
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