Meera Bai: मीरा बाई का जीवन परिचय, दोहे - Rajasthan Result

Meera Bai: मीरा बाई का जीवन परिचय, दोहे

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

भक्त शिरोमणि Meera Bai का जन्म मध्यकालीन धार्मिक वातावरण में हुआ Meera Bai सगुण वैष्णव भक्तों के रूप में प्रसिद्ध है और श्री कष्ण के गिरिधर नागर स्वरूप के प्रति समर्पित है श्री कृष्ण का गिरिवर धारी   रूपप है जहां श्री कृष्ण जन जन के रक्षक हैं और मानव मात्र की पीड़ा का हरण करने वाले हैं मीरा बाई के लिए यही स्वरूप सबसे अधिक ग्रह है इसलिए मीरा के प्रत्येक पद के अंत में मीरा के प्रभु गिरिधर नागर का संबोधन जुड़ा हुआ है।

Meera Bai ने माधुर्य भाव से अपने सांवरिया गिरिधर नागर की उपासना की और सगुण भक्तों के रूप में अपना संपूर्ण जीवन उन्हीं को अर्पित कर दिया यह अद्भुत भक्ति भाव संपूर्ण विश्व के लिए आदर्श बन गया एक लौकिक आत्मा ने अपने अलौकिक प्रभु के लिए जिए माधुर्य भाव की दर्द भरी वेदना को अनुभव किया।

उसे अत्यंत सरल सहज और मर्मस्पर्शी शब्दावली में इतनी सुंदर अभिव्यक्ति दी की आज 500 वर्षों के पश्चात भी दर्द दीवानी मीरा की वह पीड़ा जगत व्याप्त हो गई इसलिए कई बार यह आशंका भी होने लगती है कि ऐसी भक्त शादी का इस जगत में अवतरित भी हुई थी ।

अथवा उनकी संपूर्ण व्यथा कथा काल्पनिक है Meera Bai का यह आज सर्वत्र व्याप्त है मीराबाई समय स्थान जाति और धर्म की संपूर्ण सीमाओं को तोड़कर मानव मात्र की विशाल भाऊ भूमि तक पहुंच गई मीरा के जीवन की घटनाएं इतिहास सम्मत है उसके प्रमाण आज भी उपलब्ध है मीरा के जीवन की प्रत्येक घटना ऐतिहासिक है। मीराबाई का जीवन परिचय :-

 

Meera Bai

Meera Bai

 

Meera Bai का जन्म समय एवं स्थान

मीराबाई का जन्म विक्रम संवत 1555 में तत्कालीन मेड़ता राज्य के बाजोली ग्राम में हुआ। बाजोली ग्राम वर्तमान डेगाना जंक्शन से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मीराबाई मेड़ता राज्य के की कन्या थी राव दूदा तत्कालीन जोधपुर रियासत के संस्थापक राव जोधा के पुत्र थे इस प्रकार मीराबाई जोधपुर के शासक राव जोधा की प्रिपोत्री और मेड़ता के शासक दुधा की पोत्री थीी।

मेड़तिया के कुल गुरुओं की बहियो से ज्ञात होता है की Meera Bai से पूर्व रतन सिंह के एक पुत्र हुआ था जिसका नाम गोपाल था उसकी बाल्यकाल में मृत्यु हो गई थी मीराबाई के पिता रतन सिंह को मेड़ता राज्य के राजकुमार होने के कारण 12 गांव जागीर में मिले थे जिनमें बाजोली और कुंड की दो प्रमुख ग्राम थे शेष बाजोली में आज भी रतन सिंह के महलों के अवशेष विद्वान है ऐसे लोग धारणा है कि मीराबाई के मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण उनकी माता का देहांत उनके जन्म के साथ ही हो गया था। मीराबाई की माता का नाम वीर कंवरी था। Meera Bai के मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण रतन सिंह ने चारों और ब्राह्मणों को जमीन और अन्य सामग्री दान दक्षिणा में देकर ग्रहों की शांति का प्रयास किया रतन सिंह द्वारा बाजोली के पास स्थित चारनावास ग्राम चारणो को दिया गया था।

प्रसिद्ध इतिहास वेता मुंहनोत नैंसी द्वारा रचित मारवाड़ रा परगना री विगत मैं उसका उल्लेख मिलता है।

Meera Bai का पित्र परिवार

मीराबाई के दादा मेड़ता के राव दूदा के 5 पुत्र थे जिनमें वीरमदेव जेष्ठ पुत्र थे जो इतिहास प्रसिद्ध बीरबल जयमल के पिता थे राव दूदा के अन्य पुत्र रायसल रायसर रतन सिंह और पीचानसी थे।

Meera Bai का बाल्यकाल

मीराबाई का बचपन का नाम क्या है — पेमल, कसबू बाई

बाजोली में मीराबाई की माता का देहांत हो जाने के कारण रतन सिंह ने उस ग्राम को छोड़ दिया और कुंडकी को अपना निवास स्थान बनाया। वाह छोटी सी पहाड़ी पर दुर्ग की स्थापना की मीराबाई केेेेेे बाल्यकाल के कुछ वर्ष वही व्यतीत हुए कुछ वर्षों के पश्चात मीराबाई दादा राव दूदा ने मीराबाई को मेड़ता बुलवा लिया।

वैष्णव भक्त पितामह राव दूदा के स्नेह और संरक्षण में मीरा का बाल्यकाल व्यतीत हुआ मेड़ता नगर में आज भी तत्कालीन मेड़ता राजमहलो के अवशेष विद्यमान हैं और चारभुजा नाथ का मंदिर भी विद्यमान है जहां मीराबाई ने सगुण वैष्णव भक्ति का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया और अपना ध्यान भक्ति की ओर केंद्रित किया सगुण वैष्णव भक्ति के उस वातावरण में मीरा को सर्वाधिक प्रभावित किया और वह श्री कृष्ण के रंग में रंग गई श्री कृष्ण के एक स्वरूप चारभुजा की मूर्ति के समक्ष जन समुदाय और अपने राज परिवार को भक्ति भाव में निमग्न देखकर मीरा का मन भी उसी वातावरण में लीन हो गया।

Meera Bai का विवाह

मीराबाई का विवाह विक्रम संवत 1573 में मेड़ता शहर में संपन्न हुआ राव दूदा की मृत्यु के पश्चात उनके जेष्ठ पुत्र राव वीरमदेव विक्रम संवत 1972 में मेड़ता के शासक हुए और विक्रम संवत् 1573 में उन्होंने मीराबाई का विवाह धूमधाम से मेवाड़ के महाराणा सांगा के जेष्ठ पुत्र भोजराज से किया महाराणा सांगा स्वयं इस विवाह में मेड़ता आए थे और बड़े हर्षोल्लास के साथ विवाह संपन्न हुआ।

 

Meera Bai का वेधव्य

मीराबाई राजवधु बनकर मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पहुंची महाराणा सांगा से उन्हें बहुत स्नेह मिला महाराणा संग्राम सिंह ने मीरा की भक्ति भाव के संबंध में सुन रखा था अतः उन्होंने मीराबाई की भक्ति में कोई विघ्न नहीं आने दिया और इसके लिए विशेष व्यवस्था की गई दुर्भाग्यवश मीराबाई के पति भोजराज की विवाह के 6 वर्ष पश्चात ही एक अतिसार बीमारी के कारण मृत्यु हो गई और सांसारिक दृष्टि से मीरा विधवा हो गई।

Meera Bai और मेवाड़ राजपरिवार

मीराबाई के श्वसुर महाराणा संग्राम सिंह अपने युग के वीरवार योद्धा श्रेष्ठ सेनापति दूरदर्शी और महत्वकांक्षी व्यक्ति थे उन्होंने तत्कालीन भारतीय नरेशो की सम्मिलित सेना का नेतृत्व करते हुए विक्रम संवत 1584 में भरतपुर के पास स्थित खानवा मैदान में मुगल सेनापति बाबर से ऐतिहासिक युद्ध किया और हिंदू साम्राज्य की स्थापना के स्वप को साकार करने का प्रयास किया।

इतिहास प्रसिद्ध इस युद्ध में मेड़ता राज्य से भी मीराबाई के बड़े पिता वीरमदेव और मीराबाई के पिता रतन सिंह 4000 सेना लेकर महाराणा की सहायता हेतु गए और अपने अद्भुत रण कौशल से यस अर्जित किया था जिसका इतिहास साक्षी है महाराणा सांगा पर हुए प्राणघातक आक्रमण के समय इन्हीं मेड़तिया वीरों ने महाराणा सांगा को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था इसी युद्ध में दुर्भाग्यवश महाराणा सांगा की मृत्यु हो गई और उन्हीं के साथ मीराबाई के पिता रतन सिंह भी वीरगति को प्राप्त हुए।

Meera Bai के गुरु

मीराबाई के गुरु का नाम — बचपन के गुरु पंडित गजाधर, आध्यामिक गुरु— संत रैदास

मीराबाई सगुण वैष्णव भक्त थी किंतु उन्होंने किसी धर्माचार्य को अपना गुरु नहीं बनाया उनके प्रभु सांवरिया गिरधर नागर ही गुरु थे और वही स्वामी। मीराबाई की पदावली और भक्ति साधना से यही सिद्ध होता है कि मीराबाई अध्यात्म के उच्च उच्च शिखर पर पहुंच गई थी जहां किसी गुरु के आवश्यकता नहीं थी मीराबाई की है निर्गुण भक्ति गुरु भक्ति के उस मध्यकालीन धार्मिक वातावरण में एक चुनौती के रूप में सामने आई क्योंकि उस युग में अनेक धार्मिक संप्रदाय निरंतर यह प्रयास कर रहे थे कि मीराबाई उनके संप्रदाय में दीक्षित हो जाए जिससे उन्हें राज आश्रय तथा लोक आश्रय सहज ही प्राप्त हो जाए जब मीरा ने किसी आचार्य को गुरु नहीं बनाया और किसी धार्मिक संप्रदाय में दीक्षित नहीं हुई तो उसे धार्मिक आचार्य और उनके शिष्यों के विरोध का सामना करना पड़ा ।

मीराबाई ने तो कभी धार्मिक संकीर्णता में बंदी और ना ही किसी वाद प्रतिवाद में मीराबाई ने स्वयं किसी संप्रदाय की स्थापना की और न ही किसी शिष्य को अपना उत्तराधिकारी बनाया वह आदर्श भक्तों की तरह अपने सांवरिया में लीन रही सांसारिक बंधन और संकीर्णता है उन्हें बांध नहीं सकी यह प्रसिद्ध है कि मीरा सूत जायो नहीं शिष्य ने मुंडयो कोय।

Meera Bai के लिए धार्मिक जगत में यह प्रसिद्ध है कि जब वृंदावन गई तब वहां चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूप गोस्वामी और जीव गोस्वामी अपनी एकांत भक्ति साधना के लिए प्रसिद्ध हो गए थे जीव गोस्वामी का यह प्रण था कि वह किसी स्त्री का मुंह नहीं देखेंगे मीराबाई यह जानते हुए जीव गोस्वामी से मिलने गई और उनके शिष्यों से करवाया कि मेड़ता की मीराबाई उनके दर्शन करना चाहती है ।

जीव गोस्वामी यह संदेश सुनते ही आवेश में आ गए और उच्च स्तर में बोले वे यहां क्यों आ गई क्या उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि हम किसी स्त्री का मुंह नहीं देखते तपस्वी के उग्र और टी के वचनों को सुनकर अत्यंत विनम्र भाव से मीराबाई ने कहा कि मुझे आज मालूम हुआ कि इस कृष्ण भक्ति धाम में कृष्ण के अतिरिक्त कोई और भी पुरुष है मधुरा भक्ति में तो कृष्ण ही एकमात्र पुरुष हैं अभी जीव गोस्वामी पुरुष और स्त्री के ही भेदभाव में अटके हुए हैं तो उनकी साधना अधूरी है ।

इतना सुनते ही जीव गोस्वामी तत्काल बाहर आ गए और क्षमा याचना करते हुए कहा कि मैं नहीं जानता था कि आप भक्ति के उस चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई हैं जहां अभी मुझे पहुंचना है इस घटना से मीरा के उच्च कोटि के ज्ञान और भक्ति के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है।

 

Meera Bai की तीर्थ यात्राएं

मीराबाई ने अपने पीहर एवं ससुराल आते और जाते तीर्थराज पुष्कर की अनेक यात्राएं की और सरोवर में स्नान करके वहां के मंदिरों में भक्ति भाव से गाना किया पुष्कर के प्रति उनके हृदय में विशेष सम्मान तथा इसने सदा बना रहा मीराबाई अपने प्रभु के निज धाम वृंदावन और द्वारिका अवश्य गई और वहां कृष्ण के भक्ति भाव में ही लीन रही मीराबाई जब द्वारका में थी तब जूनागढ़ के प्रसिद्ध भक्त नरसी मेहता भी वही थे।

नरसी मेहता के सरल स्वभाव और कृष्ण के प्रति समर्पित भक्ति भाव से वह अत्यंत प्रभावित हुई और उन्होंने अपना अंतिम (मीराबाई की मृत्यु कैसे हुई) समय राव रणछोड़ जी के मंदिर में नरसी मेहता के सानिध्य में व्यतीत किया मीराबाई की मृत्यु से उन्हें पुणे मेवाड़ लाने के लिए उनके सबसे छोटे मीराबाई के देवर का नाम मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह तथा मेड़ता परिवार द्वारा पुरोहित एवं सम्मानित व्यक्ति द्वारका भेजे गए थे किंतु मीराबाई ने पुणे सांसारिक जीव व्यतीत करने से स्पष्ट मना कर दिया और वह पुन: नहीं लौटी।

अन्य जानकारी पढ़े

  1. सूरदास की जीवनी हिंदी में
  2. Rahim: रहीम का जीवन परिचय, व्यक्तित्व, दोहे
  3. Tulsidas: तुलसीदास का जीवन परिचय तथा रचनाएं

Meera Bai: मीरा बाई का जीवन परिचय, दोहे – अगर आपको इस पोस्ट मे पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।। धन्यवाद ।।

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!