वह तोड़ती पत्थर: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला व्याख्या,सारांश
‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता सुप्रसिद्ध कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित। मजदूर वर्ग की दयनीय दशा को उभारने वाली एक मार्मिक कविता है।
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‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता की व्याख्या
वह तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर, नहीं छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार
श्याम तन भर बंधा यौवन,
नत-नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार, सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार |
चढ़ रही थी धूप, गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप, उठी झुलसाती हुई लू,
रुई चिनगी छा गई, प्राय: हुई दुपहर
वह तोड़ती पत्थर |
देखते देखा, मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्न-तार
देख कर कोई नहीं, देखा मुझे उस दृष्टि से,
जो मार खा रोई नहीं, सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार |
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर, ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा –
“मैं तोड़ती पत्थर” |
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता “वह तोड़ती पत्थर” से लिया गया है | इस कविता के रचयिता प्रसिद्ध छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ जी हैं | इस कविता में कवि ने इलाहाबाद की सड़क के किनारे तपती धूप में पत्थर तोड़ती हुई एक श्रमिक महिला का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है |
तोड़ती पत्थर’ कविता का सारांश
‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता सुप्रसिद्ध कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित। मजदूर वर्ग की दयनीय दशा को उभारने वाली एक मार्मिक कविता है। कवि कहता है कि उसने इलाहाबाद के मार्ग पर एक मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा। वह जिस पेड़ के नीचे बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वह छायादार भी नहीं था, फिर भी विवशतावश वह वहीं बैठे पत्थर तोड़ रही थी। उसका शरीर श्यामवर्ण का था, तथा वह पूर्णत: युवा थी। उसके हाथ में एक भारी हथौड़ा था, जिससे वह बार-बार पत्थर पर प्रहार कर रही थी। उसके सामने ही सघन वृक्षों की पंक्ति, अट्टालिकाएं, भवन तथा परकोटे वाली कोठियाँ विद्यमान थीं।
वह तोड़ती पत्थर कविता का भाव पक्ष क्या है
निराला का जीवन अत्यंत संघर्ष में था इसका प्रभाव उनकी काव्य यात्रा पर भी पड़ा निराला का काव्य उनके संघर्ष में जीवन का प्रतिबिंब कहा जा सकता है। उनकी जीवन दृष्टि और काव्य दृष्टि का निर्माण इसी संघर्ष के दौरान हुआ उन्होंने जीवन और काव्य दोनों में सामाजिक आर्थिक शोषण और रूढीगत मान्यताओं का दृढ़ता पूर्वक विरोध किया | इसी कारण छायावादी कवियों में सबसे मुखर विद्रोही स्वर निराला के काव्य में व्यक्त हुआ है निराला के काव्य में भाव बोध की विविधता नजर आती है। जिसमें जीवन का हर रंग मिलता है उसमें उल्लास और अवसाद शांति और क्रांति दोनों हैं ।
निराला ने नारी सौंदर्य के चित्र खींचे हैं प्रकृति का मनोरम अंकन किया है जीवन की उदासी और निराशा को कविता में मानता है। सामाजिक क्रांति का स्वर भी उन्हें अत्यंत प्रबलता से प्रस्तुत हुआ है निराशा और अवसाद के बावजूद उनकी कविता में प्रबल जिजीविषा मिलती है।
तोड़ती पत्थर सामाजिक क्रांति का प्रतिनिधित्व करने वाली कविता है। यह निराला की अत्यंत प्रसिद्ध रचना है इस कविता में जीवन यथार्थ के दो विरोधी चित्र एक साथ दिए गए हैं एक और कड़कड़ाती धूप में पत्थर तोड़ती मजदूरिन है तो दूसरी और छायादार पेड़ों से घिरी विशाल अट्टालिकाए हैं। लेकिन कवि को महसूस होता है कि पत्थर नहीं तोड़ रही है वरन आर्थिक और सामाजिक विषमता के चट्टान को तोड़ रही है ।
वह तोड़ती पत्थर संरचना शिल्प
निराला का कला बोध भी विविधता लिए हुए हैं भाषा के कितने रूप उनके यहां मिलते हैं उतने किसी अन्य कवि के यहां नहीं। उनकी आरंभिक कविताओं में संस्कृतनिष्ठ और समास – प्रधान भाषा दिखाई देती है जिसका सर्वोत्तम उदाहरण उनकी पहली कविता ‘जूही की कली’ के साथ ही ‘राम की शक्ति पूजा’,। लेकिन बाद में उन्हें बोलचाल की भाषा का रंग नजर आने लगता है|
बोलचाल की भाषा में भी वह कई तरह के प्रयोग करते हैं ‘वह तोड़ती पत्थर’ की भाषा यद्यपि बिल्कुल बोलचाल की नहीं है लेकिन उनमें शब्दों का प्रयोग अत्यंत कुशलता से किया गया है शब्दों में व्यक्त कठोरता जीवन की कठोरता को प्रतिबिंबित करने लगती है। ‘श्याम तन, भर बधा योवन’, मैं ‘पत्थर तोड़ती’ मजदूरिन का अत्यंत कर्मरत और जीवन व्यक्तित्व साकार हुआ है।
‘निराला’ हिंदी के पहले कवि हैं जिन्होंने काव्य शिल्प की चली आती रुढियों में पूरी तरह मुक्त होने का प्रयास किया उन्होंने हिंदी कविता को छंद के बंधन से मुक्त किया। इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्होंने छंद बंद कविता नहीं लिखी वरन सच्चाई यह है कि परंपरागत शब्दों में नए प्रयोग करके उन्हें नया निखार दिया और कई नए छंदों का निर्माण भी किया अपनी मुक्त संघ की कविता में भी उन्होंने ले और संगीत का समुचित समावेश किया है।
वह तोड़ती पत्थर कविता का प्रतिपाद्य क्या है
निराला की कविताओं में जो सामाजिक और यथार्थ दृष्टि दिखाई देती है वह उनके जीवन संघर्षों की ही देन है। निराला को जीवन भर जो दुख और अपमान झेलने पड़े। उनके कारण उनका स्वर सामाजिक अन्याय और आर्थिक शोषण के विरुद्ध प्रबल वेग में उमड़ पड़ा।
निराला यद्यपि सौंदर्य और प्रेम के भी कवि हैं और ऐसी कविताओं का अपना अलग अलग आकर्षण है लेकिन जीवन संघर्षों से उन्हें समाज के प्रति अधिक सजग बनाया है।
निराला शुरू से ही मूलभूत परिवर्तनों के पक्षधर रहे हैं उन्होंने 22-23 की उम्र में अपनी ‘बादल राग’ शीर्षक कविताओं में ही शोषण और उत्पीड़न वर्ग पर आघात किया था और किसान को क्रांति का दूत कहा था। बाद में तो उनका स्वर शोषक वर्ग के प्रति अधिकाधिक कटु होता गया जो ‘बेला‘ तथा ‘नए पत्ते’ की कविताओं में व्यंग बनकर उभरा।
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