बाबर का इतिहास | History Of Baber जाने
इस समय जब बाबर भारत कि तरफ आगमन की तैयारी कर रहा था तब उस समय पंजाब में दौलत खां लोदी था इस समय भारत में लोदी वंश चल रहा था जिसकी राजधानी आगरा थी और सुल्तान इब्राहिम लोदी जोकि 1517 मैं सुल्तान बने थे।
बाबर के पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था जो कि फरगना रियासत के शासक थे | फरगना ट्राक्स आक्सियाना या मावरउ नहर के किनारे अवस्थित था | उमर शेख मिर्जा के फरगना रियासत को प्राप्त करने के लिए उसका सगा भाई अहमद शेख मिर्जा उसे निरंतर चुनौती देता रहता था कई बार इन दोनों भाइयों के संघर्ष की स्थिति जीवन को समाप्त करने की स्थिति पर पहुंच जाती थी |
उमर शेख मिर्जा को आशिकी (कबूतर बाजी ) का शौक था | इसी खेल को खेलने के दौरान एक जर्जर मकान से गिर जाने के कारण उसके मलबे में दबने से उमर शेख मिर्जा की मृत्यु हो गई और इस प्रकार समरकंद के अधिन फ़रगना राज्य पर बाबर के चाचा अहमद शेख मिर्जा का नियंत्रण स्थापित हो गया |
बाबर की मां कुतलुग निगार खानम जो कि एक मंगोल महिला थी बाबर के जीवन की रक्षा के लिए फरगना से अपने कुछ सहयोगियों के साथ जान बचाकर भागी और इस तरह कुतलुग निगार खानम ने बाबर को बचाने में सफलता प्राप्त की |
बाबर में निरंतर संघर्ष (5 बार) के बाद काबुल पर नियंत्रण स्थापित करने में सफल हुआ लेकिन बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक ए बाबरी या वाकियत ए बाबरी में कहता है मैंने किसी भी क्षण फरगना को जीतने की बात को अपने मस्तिष्क से भुलन नहीं दिया|
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बाबर व इब्राइम लोदी पानीपत का प्रथम युद्ध 1526
बाबर को भारत में हमला करने के लिए दौलत खां लोदी ने आमंत्रित किया था कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी दौरान राणा सांगा भी बाबर को आक्रमण करने के लिए कहे थे क्योंकि राणा सांगा इब्राइम लोदी को दो छोटे-छोटे युद्धों में परास्त करने का प्रयास कर चुके थे लेकिन वह उनके लिए निर्णायक नहीं था राणा सांगा इब्राहिम लोदी की सत्ता को उखाड़ फेंकना चाहते थे, और अपनी सत्ता स्थापित करने का स्वप्न देख रहे थे |
पानीपत के मैदान में बाबर आपने 1200 सैनिक लेकर युद्ध करने आया था जिसका उल्लेख उस ने अपनी आत्म कथा तुजुक ए बाबरी में किया है इब्राहिम लोदी की तरफ से इस युद्ध में एक विशाल सेना आई थी इस युद्ध में बाबर ने युद्ध जीतने के लिए अपनी क्षमता के साथ साथ अपनी सूझबूझ का भी प्रयोग किया |
बाबर को भारत के मानसून और भूगोल का भी ज्ञान था यही कारण है कि पानीपत के मैदान में बाबर ने युद्ध को तब तक संघर्ष से रोका जब तक मौसम मे नमी नहीं प्रारम्भ हो जाती है। जिससे इब्राइम लोदी के सेना का प्रबंधन अव्यवस्थित किया जा सके I
बाबर ने पानीपत के मैदान में तुलगमा पद्धति का भी प्रयोग किया था इस पद्धति में तोपों को एक विशेष ढंग से आपस में बांधा जाता है पानीपत के मैदान में तोपो को चमड़े के रस्सी से बांधा गया था बाबर भारत में बारूद का प्रयोग प्रारंभ करने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है | बाबर ने बारूद का प्रयोग सर्वप्रथम भिंडा और बाजोर किले पर किया था |
बाबर अपने साथ दो तोपची मुस्तफा और उस्ताद अली को भारत लेकर आया था बाबर के अलावा बारूद के प्रयोग का साक्ष्य दक्षिण भारत में विजयनगर के शासकों द्वारा प्रयोग करने का मिलता है |
बाबर ने 1526 को इब्राहिम लोदी को पराजित करते हुए युद्ध में विजय प्राप्त की | बाबर की सफलता का श्रेय उसके तोपची/गोला बारूद या तुलगमा पद्धति को दिया जाता है | जबकि तुजुक ए बाबरी में बाबर ने अपनी सफलता का श्रेय अपने तीरन्दाजो को दिया है जो घुड़सवारी करते हुए तीर से शत्रु को निशाना लगाने प्रशिक्षित थे।
इब्राहिम लोदी का मकबरा पानीपत के मैदान में है। इसी के साथ बाबर ने आगरा की गद्दी पर अपना नियंत्रण स्थापित किया एक नए वंश मुगल वंश की स्थापना की और दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश का अंत कर दिया |
खानवा का युद्ध 1527
खानवा के युद्ध बाबर और राणा सांगा के मध्य लड़ा गया था राणा सांगा को संग्राम सिंह भी कहा जाता था । खानवा का मैदान आगरा के अवस्थित है इस युद्ध में बाबर_ने जिहाद का नारा दिया था स्वयं को गाजी घोषित किया इस्लाम में शराब पीने पर पाबंदी है इसलिए बाबर ने सभी शराब जमीन पर फिकवा दी और सारे बर्तन शराब के तुड़वा दिए |
खानवा के मैदान में भी बाबर ने तुमलगमा पद्धति का प्रयोग किया था इस युद्ध मे तोपों को लोहे की जंजीरों से बांधा गया था l इस युद्ध में राणा सांगा की पराजय हुई और बाबर इस युहप में भी जीत हासिल हुई।
चन्देरी का युद्ध- 1528
मालवा के शासक मेदिनी राय ने राणा सांगा का साथ दिया था इसलिए खानवा के युद्ध के बाद_बाबर ने 1528 में मेदिनीराय के विरुद्ध चंदेरी का युद्ध किया इस युद्ध में भी बाबर की जीत हुई |
घग्घर का युद्ध -1529
इस युद्ध में बाबर ने अपने विरोधी शक्तियों को परास्त करने में सफलता प्राप्त की । 1530 में बाबर_की आगरा में मृत्यु हो गई पहले आगरा के आराम बाग में दफनाया गया बाद में उसे काबुल में दफनाया गया । बाबर_ने तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा तुजुक ए बाबरी लिखा था इसे ही बाकियत ए बाबरी के नाम से भी जाना गया | इसका फारसी अनुवाद बाबरनामा है | फ़ारसी में अनुवाद करने वाले व्यक्ति शेख़ जेतुदीन ख़्वाजा था जो बाबर_का सद्र-उस-सुदुर था।
बाबर ने एक नई लिपि का आविष्कार किया था जिसे बाबरी लिपि कहां गया अकबर के समय तो तुजुक ए बावरी का तीन बार फारसी में अनुवाद हुआ | 1583 में अकबर के आदेश पर बैरम खां के पुत्र अब्दुल रहीम खानखाना ने तुजुक ए बाबरी का फारसी में अनुवाद किया| शाहजहां के काल में इसका चौथी बार फारसी में अनुवाद हुआ |
अंग्रेजी में इसका प्रथम अनुवाद 1826 में लिडेन एवं एर्स्किन ने किया। 1905 ए एस बेब्रीज ने पुनः इसका अंग्रेजी अनुवाद किया लेकिन यह अनुवाद बाबर_के मूल ग्रंथ तुजुक ए बाबरी से किया गया था जो की तुर्की भाषा में थी | इस ग्रंथ का फ्रेंच भाषा में भी अनुवाद किया गया किंग नामक व्यक्ति के द्वारा।
बाबर लेखन कला का भी शौकीन था और वे अपने फुर्सत के क्षण फारसी भाषा में दोहा छंद भी लिखता था जिसे रुबाईया/ मुब्बईयान कहते हैं | बाबर_को गाने का भी शौकीन था बाबर को कलंदर भी कहा गया है l
बाबर_के व्यक्तित्व में एक यह भी विशिष्टता थी की युद्ध में प्राप्त धन और लाभ को अपने सहयोगी और सैनिकों में भी बाटता था | उसके विषय में कहा गया है कि एक अदाली यानी चांदी का सिक्का ही सही लेकिन प्रत्येक सैनिक के पास पहुंचा था जबकि इब्राईम लोदी इस दृष्टि से बहुत कंजूस था |
बाबर_का मौसेरा भाई जिसका नाम मिर्जा हैदर दोगलक था इसमें तारीख ए रसीदी नामक ग्रंथ की रचना की इस ग्रंथ में कन्नौज की लड़ाई का वर्णन है ।
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