ब्रह्म समाज : सार्वभौमिक सुधार आंदोलन क्या है? जाने - Rajasthan Result

ब्रह्म समाज : सार्वभौमिक सुधार आंदोलन क्या है? जाने

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ब्रह्म समाज:—  राजा राममोहन राय 1775 से 1833 बंगाल के एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। 9 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बचपन में ही उनका विवाह तीन बार हो गया था उनके बहुविवाह ही जीवन में ही संभवत है उन्हें बाल विवाह और बहुविवाह का धुर विरोधी बना दिया था उनकी पढ़ाई तब के इस्लामिक विद्वता के केंद्र पटना में हुई। जिसने उन्हें इस्लाम के लोकतांत्रिक आदर्श और अरबी भी चिंतन के तार्किक तत्व विशेष रूप से मुतासिलस की बौद्धिक वैचारिक संस्थाओं से परिचित कराया |

इस्लाम के अध्ययन से वे मूर्ति पूजा और अंधविश्वास के विरोधी बन गए 1804 में उन्होंने अपनी पुस्तक तूहफातुल मुवाहिद्दीन, जो प्रकृति के धर्म शास्त्र पर एक निबंध है। प्रकाशित हुई उन्होंने देखा कि एक ही स्वर में आस्था न केवल प्राकृतिक ए बल्कि सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए सामान्य है|

ब्रह्म समाज और भारत के जागरण पर इसका प्रभाव

ब्रह्म समाज (एकेश्वरवादी समाज) की स्थापना राम मोहन राय द्वारा 1828 में की गई। यह सभी के लिए सामान्य पूजा स्थल उपलब्ध कराता था ट्रस्ट के अधिकार पत्र के अनुसार समाज में ट्रस्ट के प्रत्येक मंत्री या व्याख्याता को जाति और सांप्रदायिक भेद के किसी भी प्रतीक से दूर रहना चाहिए और एकता और भाईचारे को प्रोत्साहित करना चाहिए यह पहला आधुनिक धार्मिक सुधार था। जिसमें हिंदू धर्म ग्रंथ और परंपराओं की पुनर व्याख्या धर्मों की संस्कृति के रूप में हिंदुत्व और ब्रह्मसमाज की सार्वभौमिकता को स्थापित करने के लिए की |

सामाजिक और धार्मिक सुधार

राममोहन राय ने देखा कि भारत में सामाजिक सुधार धार्मिक सुधारों के माध्यम से ही किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा मैं सोचता हूं कि उनके धर्म में कुछ सुधार किए जाएं कम से कम उनके राजनीतिक लाभ और सामाजिक उन्नति के लिए। उन्होंने मूर्ति पूजा के मूल में कई सामाजिक कुरीतियों की जड़ देखी इन सामाजिक कुरीतियों ने सामाजिक संरचना को नष्ट कर दिया था और धार्मिक नीतियों के पालन के नाम पर आत्म बली, मित्रों और रिश्तेदारों की बलि को बढ़ावा दिया था।

राममोहन राय ने बहुदेववाद का भी खंडन कियाI हिंदुत्व की सच्ची भावना एकेश्वरवाद है के समर्थन में उन्होंने द ट्रांसलेशन ऑफ द अब्रिजमेंट ऑफ द वेदांता, ए डिफेंस ऑफ हिंदू थीज्म और सेकंड डिफेंस ऑफ द मोनोथेष्टिक सिस्टम ऑफ वेदांश का प्रकाशन कराया। वह इस बात से सहमत हैं कि ईश्वर की उपासना हिंदू शास्त्रों के वास्तविक भाव और नैतिकता के शुद्धतम सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए |

सामाजिक सुधार के क्षेत्र में रेमाउट्स के महानतम योगदान में से एक है सती प्रथा विधवाओं कोजीवित जलाने की प्रथा का उन्मूलन। रीमाउंट के अनुसार कोई भी हिंदू धर्म शास्त्र सती प्रथा का समर्थन नहीं करता है उन्होंने सती प्रथा की जानबूझकर की गई हत्या और हिंदुत्व का भटकाव कहकर आलोचना की। इसलिए उन्होंने ऐसा है विधवाओ की मुक्ति के लिए एक सोसाइटी के लिए धन संग्रह किया |

राममोहन ने स्त्रियों के अधिकारों की प्रतिरक्षा की और ब्राह्मणों में प्रचलित बहुविवाह का खंडन किया वे जानते थे कि जनता में आत्म जागरूकता लाने और न्याय तथा समानता बहाल करने के लिए उचित शिक्षा अनिवार्य है।

1817 ईस्वी में डेविड हरे की सहायता से उन्होंने कोलकाता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की। उन्होंने समाज के बौद्धिक पुनर्जागरण के लिए अंग्रेजी शिक्षा और अन्य उपयोगी विज्ञानों के साथ गणित प्राकृतिक दर्शन रसायन विज्ञान और शरीर व्यवच्छेदन चेतन की शिक्षा को प्रोत्साहित किया।

ब्रह्म समाज के आंदोलन का उत्तर कालीन विकास

ब्रह्म समाज की स्थापना के साथ भारत में सर्वप्रथम एकेश्वरवादी आस्था के प्रचार एवं प्रसार के लिए 1 लोग धर्म की स्थापना हुई इसने पारस्परिक हिंदू धर्म की आलोचना करते हुए इसमें आवश्यक सुधार किए और इसे एक नया और सार्वभौमिक आधार प्रदान किया |

संक्षेप में ब्रह्म समाज एक भारतीय आस्था वादी पक्ष था यह सभी जातियों और धर्मों के लोगों के लिए खुला था इसने एकेश्वरवादी समाज का प्रचार किया और मूर्ति पूजा और बहूदेवबाद का खंडन किया इसने सामाजिक और धार्मिक सुधार आरंभ की है जिसमें विभिन्न धर्मों के भी सहिष्णुता और एकता को प्रोत्साहित किया।

राममोहन राय की मृत्यु के बाद देवेंद्र नाथ टैगोर और उसके बाद केशव चंद्र सेन ने ब्रह्मसमाज के नेतृत्व का काम अपने हाथों में लिया केशव चंद्र सेन एक प्रेरक वक्ता लेखक और नेता थे जिन्होंने धार्मिक सहिष्णुता की खोज और उसका प्रचार किया आज यह समाज साधारण ब्रह्म समाज के नाम से जाना जाता है।

राजा राम मोहन राय को राजा की उपाधि किसने दी ?

कम ही लोग जानते हैं कि राममोहन ‘राजा’ शब्द के प्रचलित अर्थों में राजा नहीं थे. उनके नाम के साथ यह शब्द तब जुड़ा जब दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक बादशाह अकबर द्वितीय (1806-1837) ने उन्हें राजा की उपाधि दी।

ब्रह्म सभा के उदेश्य

  1. हिन्दु धर्म में सुधार करना
  2. धार्मिक गुरुओ की आवश्यकता को समाप्त करना

राजा राममोहन राय के द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र

1. संवाद कोमुदी – बाग्ला भाषा –राममोहन राय ने इस समाचार पत्र के माध्यम से सती प्रथा का विरोध किया |

2. मिरातुल अख़वार – फ़ारसी भाषा में

3. ब्रहम निकल मेग्नीज – अंग्रेजी भाषा में

विलियम बैटिंग के काल में राममोहन राय के प्रयासों से 1829 में नियम 17 के तहत बंगाल में सती प्रथा पर पाबंदी लगा दी गई जबकि 1830 में मुंबई में मद्रास में भी सती प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया।

1825 में राममोहन राय के द्वारा वेदांत कॉलेज की स्थापना की गई अकबर द्वितीय ने राम मोहन राय को राजा की उपाधि दी राजा राममोहन राय अकबर द्वितिय की पेंशन की बात कर नहीं तो इंग्लैंड गए और इंग्लैंड के ब्रिस्टल नामक स्थान पर राममोहन राय की मृत्यु हो गई। ब्रिस्टल में ही राममोहन राय की समाधि है जहां हरीकेली नाटक की पंक्तियां उत्कीर्ण है हरिकेली नाटक की रचना अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ के द्वारा की गई।

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