दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 | Dowry Prohibition
दहेज प्रतिषेध अधिनियम:— 26 जून 1961 को पारित तथा 1 जुलाई 1961 से लागू इस अधिनियम में दहेज लेने और देने वाले व्यक्ति या दहेज लेने या देने हेतु प्रेरित करने वाले व्यक्ति को कम से कम 5 वर्ष का कारावास या न्यूनतम ₹15000 या दहेज की रकम जो भी अधिक हो, का आर्थिक दंड या दोनों सजाएं न्यायालय द्वारा दी जा सकती हैं।
दहेज अपराधों की जांच ठीक प्रकार से करने के लिए इसे गैर जमानती अपराध बना दिया गया है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम में 1984 में 1986 में संशोधन करके इस सजा को 6 वर्ष से 10 वर्ष तक बढ़ा दिया गया है IPC में एक नया अनुच्छेद 304B जोड़ा गया है जिसके अनुसार यदि लड़की की मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के अंदर असामान्य परिस्थितियों में हुई हो तो इसमें पति या उसके परिवार वालों को प्रमाण देने के लिए उत्तरदाई ठहराया गया है तथा यदि वह दहेज हत्या के दोषी हैं तो यह अधिनियम उन्हें 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम मैं दहेज निषेध अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान भी किया गया है वह दहेज के मुद्दों को प्रभावशाली ढंग से निपटाने के लिए दहेज विरोधी प्रकोष्ठ की भी स्थापना हो गई है तो वही IPC की धारा 498 A भी पत्नी को उसके पति या ससुराल वालों की ओर से दहेज हेतु प्रताड़ित करने पर दोषियों को 3 वर्ष तक की सजा का प्रावधान करती है।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 2 को दहेज संशोधन अधिनियम 1986 के तौर पर संशोधित किया गया जिसमें दहेज को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है:—
दहेज का अर्थ है प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर दी गई कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रति भूमि सुरक्षा या उसे देने की सहमति विवाह के एक पक्ष के द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को या विवाह के किसी पक्ष के अभिभावकों द्वारा या विवाह के किसी पक्ष के किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को यह शादी के वक्त या उससे पहले या उसके बाद कभी भी जो भी उपयुक्त पक्षों से संबंधित जिनमें (मेहर) की रकम सम्मिलित नहीं की जाती अगर व्यक्ति पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होता है।
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दहेज प्रतिषेध अधिनियम, से जुड़ी प्रमुख धाराएं
धारा 2 दहेज का मतलब है कोई संपत्ति या बहुमूल्य प्रति भूमि देना या देने के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से
(A) विवाह के एक पक्ष कार द्वारा दूसरे पक्ष कार को या
B) विवाह के किसी प्रकार के अभिभावक या दूसरे व्यक्ति द्वारा विवाह के किसी प्रकार को विवाह के समक्ष या पहले या बाद में देने या देने के लिए सहमत होना।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 इसके तहत दहेज लेने देने का अपराध करने वाले को कम से कम 5 वर्ष के कारावास साथ में कम से कम ₹15000 या उतनी राशि जितनी कीमत उपहार की हो इनमें से जो भी अधिक हो जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 इसके तहत यदि किसी प्रकार के माता-पिता अभी बाबा की या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें कम से कम 6 माह और अधिकतम 2 वर्ष के कारावास की सजा और ₹10000 तक जुर्माना हो सकता है।
धारा 4 A किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रकाशन या मीडिया के माध्यम से पुत्र पुत्रि की शादी की एवज में व्यवसाय या संपत्ति या हिस्से का कोई प्रस्ताव भी दहेज की श्रेणी में आता है और उसे भी कम से कम 6 माह और अधिकतम 5 वर्ष के कारावास की सजा तथा ₹15000 तक जुर्माना हो सकता है।
धारा 6 इसके तहत यदि कोई दहेज विवाहिता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति द्वारा धारण किया जाता है तो दहेज प्राप्त करने के 3 माह के भीतर या औरत के नाबालिक होने की स्थिति में उसके बालिग होने के 1 वर्ष के भीतर उसे अंतरित कर देगा यदि महिला की मृत्यु हो गई हो और संतान नहीं हो तो अभिभावक को दहेज अंतरण किया जाएगा और यदि संतान है तो संतान को दहेज अंतरण किया जाएगा।
धारा 8 A इसके तहत यदि घटना से 1 वर्ष के भीतर शिकायत की गई हो तो न्यायालय पुलिस रिपोर्ट या क्षुब्ध द्वारा शिकायत किए जाने पर अपराध का संज्ञान ले सकेगा।
दहेज से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराएं
धारा 406 यदि किसी स्त्री द्वारा उसका स्त्री धन वापस मांगा जाता है और देने से मना कर दिया जाए तो 3 वर्ष तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
धारा 498 A इस धारा के अनुसार किसी स्त्री को उसकी पति या नातेदार द्वारा शारीरिक उत्पीड़न अन्य मानसिक उत्पीड़न कियां जाता है तो उसके लिए बाध्य दंड संहिता में 3 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।
धारा 304 B यदि किसी विवाहित स्त्री की विवाह में 7 वर्ष तक किसी अज्ञात कारण से मृत्यु हो जाती है और उनके अभिभावक को यह लगे कि मृत्यु का कारण ससुराल पक्ष है तो उसके लिए ससुराल पक्ष को जिम्मेदार माना जाता है। इस प्रकार के अपराध की सजा भारतीय दंड संहिता के अनुसार कम से कम 7 वर्ष तथा अधिकतम आजीवन हो सकती है।
दहेज प्रथा के कारण
दहेज प्रथा की बुराइयाँ असंख्य हैं । बाल-विवाह, अनमेल विवाह, वृद्ध-विवाह आदि दूषणों की यह जड़ है । इस कुप्रथा ने समाज में अनाचार और वेश्यावृत्ति को जन्म दिया है । बहुत से लोग अपनी कन्याओं की उत्तम शिक्षा इसलिए नहीं दिलाते हैं कि पढ़ी-लिखी कन्या के लिए दहेज अधिक देना पड़ता है ।
यह प्रथा विवाहित परिवारों के मधुर संबंध में विष बीज बोती है और सब दंपतियों को विवाह-विच्छेद के लिए विवश करती है । इस कुप्रथा की काली छाया से कन्याएँ बुरी तरह से आक्रांत हैं । इससे अनेक गृहिणियों शारीरिक व मानसिक बीमारियों की शिकार बनती हैं । इससे स्त्री जाति का महत्त्व घट गया है । इस भौतिकवादी युग में कन्या की सुंदरता, सुशीलता और शिक्षा के स्थान पर केवल धन हावी हो गया है।
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम
दहेज मानव जाति के लिए एक अभिशाप है। इससे राष्ट्र को व्यक्तिगत और समष्टिगत हानियाँ होती हैं। दहेज के प्रभाव में लड़की अयोग्य वर को सौंप दी जाती है। बेमेल विवाह ज्यादा दिन टिकाऊ नहीं होते। द्वन्द और संघर्षों के बाद तलाक की तौबत आ जाती है। माता-पिता ऋण के बोझ से दब जाते हैं। यदि किसी प्रकार चातुर्य से लड़की को अच्छा घर और अच्छा वर मिल भी गया और दहेज इच्छानुकूल उसके साथ न पहुंचा, तो ससुराल में लड़की का जीवन दूभर हो जाता है। वह या तो पिता के घर वापस आ जाती है या उसे मौत की शरण लेनी पड़ती है।
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