लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की अवधारणा|
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था उसे कहा जाता है जिसमें जनता स्वयं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष विधि से अपने जनप्रतिनिधियों द्वारा समष्टि रूप से सम्पूर्ण जनता के हित की दृष्टि से शासन करती है, न कि किसी समुदाय या वर्ग विशेष के हित की दृष्टि से ।
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की अवधारणा
लोकतंत्र के जिस आदर्श स्वरूप की बात की जाती है वह व्यवहार में उतारना कठिन है, क्योंकि लोकतंत्र का क्रियान्वयन सामान्यतया राजनैतिक दलों के माध्यम से होता है लेकिन दलीय राजनीति व जनसाधारण की अज्ञानता- अनभिज्ञता के कारण लोकतंत्र सम्पूर्ण जनता के हित के स्थान पर वर्ग विशेष के हित का साधन बन कर रह जाता है, सम्पूर्ण जनता में निहित सम्प्रभुत्ता का उपभोग सत्तारूढ़ दल के शीर्षस्थ नेता अथवा कर्मचारीवृंद के हाथों में आ जाता है और सामाजिक समानता के बजाय सामाजिक विषमता का बोलबाला हो जाता है।
लोकतंत्र की इस व्यावहारिक कठिनाई को दूर करने की दृष्टि से विकेन्द्रित लोकतंत्र और दल विहीन शासन व्यवस्था की सिफारिश की जाती है। यहां लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण और दल विहीन व्यवस्था पर चर्चा करना प्रासंगिक होगा।
सर्वश्रेष्ठ प्रजातांत्रिक व्यवस्था उसे कहा जाएगा जिसमें अधिकाधिक विकेन्द्रीकरण हो । जनतंत्र में राज्य की सर्वोच्च सत्ता औपचारिक रूप से जनता में निहित होनी चाहिए। शासन के दिन प्रतिदिन के कार्यों में आम जनता की सक्रीय भागीदारी होना इसकी प्रथम आवश्यकता है। मिल कहते हैं कि “सामाजिक राज्य की सब आवश्यकताओं को पूरी तरह से पूर्ण करने वाला शासन वही हो सकता है जिसमें सम्पूर्ण जनता भाग ले।
” लोकतंत्र का आदर्श रूप वह होगा जिसमें आम जनता का योगदान सतत, व्यापक सक्रिय और क्रियात्मक हो । इकबाल नारायण का कहना है कि “.. लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण शासन कार्य में जनता के योग की एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें यह योग समय-समय पर दो, तीन, चार या पांच वर्ष बाद राष्ट्रीय या प्रादेशिक सरकार के लिये प्रतिनिधियों का चुनाव कर लेने तक ही सीमित गही रहता, वरण उसमें उस योग का रूप अपने स्थानीय क्षेत्र, ग्राम या नगर के सार्वजनिक मामलों के दिन प्रतिदिन के प्रबंध में सक्रिय भाग लेने का होता है।
विकेन्द्रित लोकतंत्र, लोकतंत्र का वह रूप है जिसमें सार्वजनिक मामलों का प्रबंध कार्य चोटी के लोगों तक सीमित नहीं रहता, वरण उसका संचालन, प्रबंध कार्य में सक्रिय भाग लेने वाली जनता की उन स्थानीय इकाईयों द्वारा होता है, जो न्यूनाधिक रूप से छोटी-छोटी सरकारें होने के कारण शासन की वास्तविक शक्ति एवं लोकतांत्रिक विचारों व लोकप्रिय कार्यों के केन्द्र के रूप में कार्य करती है।”
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण शक्ति के प्रत्यायोजन’ (Delegation of Power) और प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण (Administrative Decentralisation) से भिन्न होने के कारण ही लोकतान्त्रिक शब्द के साथ विकेन्द्रीकरण शब्द का प्रयोग किया जाता है। कुछ लोग यह प्रश्न करते है कि जब लोकतंत्र शब्द में विकेन्द्रीकरण निहित है तो इसके साथ पृथक से विकेन्द्रीकरण शब्द का क्या औचित्य है?
इसका उएर यही है कि शक्ति के प्रत्यायोजन और प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण से भिन्न होने के कारण ही विकेन्द्रीकरण शब्द का प्रयोग किया गया है।
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण से व्यापक है। प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण की अनुपस्थिति में प्रत्येक प्रशासनिक इकाई अपने उच्च स्तर के अधिकारियों के दिशा-निर्देशों का सदैव इन्तजार करते हैं और वे तब तक कुछ नहीं करते जब तक कि ऊपर से आदेश प्राप्त नहीं हो जाते। प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण अपनाए जाने के पश्चात प्रत्येक इकाई निश्चित सीमा तक बिना ऊपर के आदेश या इशारे के इंतजार किये अपना कार्य सम्पन्न कर सकती है।
प्रशासनिक इकाईयों को दिन-प्रतिदिन के कार्य में कुशलता बनी रहती है, वे निश्चित सीमा तक बिना समय नष्ट किये अपना कार्य सम्पन्न करते चलते है। प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण के मूल में प्रशासनिक कुशलता निहित है जबकि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण का उद्देश्य ही राष्ट्रीय, प्रादेशिक और (विशेषकर) स्थानीय स्तरों पर शासन कार्य में जनता का अधिकाधिक हिस्सा लेने की व्यवस्था किया जाना है।
प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों पर कार्यरत प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों को मात्र इस बात का अधिकार होता है कि निर्धारित नीति के अन्तर्गत काम करते हुए विभिन्न योजनाओं को अनावश्यक बाह्य हस्तक्षेप के बिना अपने स्वयं के विवेक से कार्यन्वित कर सकें। जबकि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के अन्तर्गत जनता की विविध स्तरों की प्रतिनिधि संस्थाओं को लोक कल्याण की विविध योजनाओं का निर्माण करने तथा स्वतंत्रतापूर्वक अपनी-अपनी परिस्थितियों के अनुसार उनका क्रियान्वयन करने और संचालन करने का अधिकार होता है। इससे स्पष्ट है कि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण से व्यापक है।
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण में जनता द्वारा मौलिक उपभोग की व्यवस्था है, प्रशासनिक प्रत्यायोजन केवल प्रशासनिक उपयोगिता की वस्तु है तथा वह नीचे के प्राधिकारियों द्वारा केवल ऊपर से प्राप्त की हुई शक्ति के उपभोग की व्यवस्था है। शक्ति का प्रत्यायोजन का तात्पर्य किसी उच्चाधिकारी द्वारा निम्न अधिकारी को इस प्रकार का अधिकार देना है कि उसका प्रयोग निम्न अधिकारी अपने स्वयं के अधिकार की तरह नहीं करके मात्र एक प्रदत्त अधिकार की तरह ही करें और यह उच्चाधिकारी के प्रसाद पर्यन्त ही ऐसा कर सकता है अर्थात जब तक उच्चाधिकारी चाहता है तभी तक वह ऐसा कर सकता है। उच्चाधिकारी द्वारा प्रयायोजित शक्ति वापस भी ली जा सकती है।
इस सम्बन्ध में पाल मेयर का कहना है कि “केन्द्रीय प्रशासन का निर्देश देने तथा निर्णयों को संशोधित करने का अधिकार सुरक्षित रहता ….. केन्द्रीय संगठन सुसम्बद्ध होता है, अर्थात वह उच्च स्तरीय व अधीनस्थ इकाइयों का एक दृढ़ ढांचा होता है।” जबकि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण केन्द्रीय मामलों का प्रबंधन अपने आप करने के लोकतंत्रीय सिद्धान्त के क्रियान्वयन को व्यापक करके उसे स्थानीय क्षेत्र तक लागू करता है।
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण में स्पष्टतः अधिकार की भावना निहित है जबकि प्रशासनिक प्रत्यायोजन में उच्च स्तरीय प्राधिकरण की स्वेच्छा या रियायत पर निर्भर है, वे जब चाहे प्रत्यायोजित शक्ति को वापस भी ले सकते है।।
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