जहाँ न धर्म न बुद्धि नहि नीति | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | अंधेर नगरी । भारतेन्दु |
जहाँ न धर्म न बुद्धि नहि नीति ने सुजन समाज।
वे ऐसहि आपुहिं नसै जैसे चौपट राज॥
जहाँ न धर्म न बुद्धि
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी रचित ‘अंधेर नगरी’ प्रहसन के छठे दृश्य से ली गई है इन पंक्तियों में महंत जी भरतवाक्य की तरह भविष्य के लिए चेतावनी देते हुए कहते हैं ……………….
व्याख्या – महंत गोवर्धन दास को सद्गुणों का उद्घाटन करते हुए कहते हैं कि जहां धर्म की अवहेलना की जाती है लोग विवेकपूर्ण तरीकों से नहीं चलते नीतियों का पालन नहीं करते और बुद्धि से काम नहीं लेते ऐसा समाज मनुष्य के रहने के उपयोगी नहीं है वह समाज पतनोन्मुखी होता है जहां का प्रत्येक व्यक्ति दिशाशून्य कर्तव्यहीन और निराशा में डूबा रहता है ऐसे समाज का जल्द ही पतन होना निश्चित है। ऐसे लोग निश्चित ही चौपट राजा की तरह जल्दी नष्ट हो जाते हैं क्योंकि विषम चिंतन ही मनुष्य को नाश की ओर ले जाता है।
विशेष
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने बताया कि विवेक हीन व्यक्ति अपनी मूर्खता के कारण ही चौपट राजा के समान अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है।
2. दोहा छंद का सुंदर प्रयोग हुआ है। a a a a a a a a a a a a a a a a a a a a a aजहाँ न धर्म न बुद्धि
3. तद्भव शब्दों के साथ तत्सम शब्दों का प्रयोग भाषा को भी ईश्वर स्वरूप प्रदान करता है। जहाँ न धर्म न बुद्धि
4. महन्त तथा चेलों के कथोपकथन मैं सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है। जहाँ न धर्म न बुद्धि
5. प्रस्तुत पंक्तियों की शैली उपदेशात्मक है।
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