रूपनिधान सुजान लखें बिन आँखिन | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
रूपनिधान सुजान लखें बिन आँखिन दीठि हि पीठी दई है।
ऊखिल ज्यौं खरकै पुतरीन मैं, सूल की मूल सलाक भई है।
ठौर कहूँ न लहै ठहरानि को मूदें महा अकुलानि भई है।
बूढ़त ज्यौ घनआनंद सोचि, दई विधि व्याधि असाधि नई है।। 3 ।।
रूपनिधान सुजान लखें बिन आँखिन
प्रसंग – यह पद्य कविवर घनानंद द्वारा रचित उनकी ‘सुजानहित’ नामक रचना से लिया गया है। प्रिय के प्रेम में लगी आंखों को विधाता द्वारा दिया गया एक असाध्य रोग बताते हुए प्रेमीका या नायिका ने अपनी सखी से जो प्रतिक्रिया व्यक्त की, उसका वर्णन करते हुए इस पद्य में कवि कह रहा है कि –
व्याख्या – हे सखि! अब मैं तुम्हें प्रेम की मारी इन आंखों की दशा क्या और कैसे बताऊं? अब तो मेरी इन आंखों की यह हालत हो गई है कि जब तक उस सौंदर्य के आगार प्रियतम को नहीं देख लेती, मेरी तरफ कोई ध्यान ही नहीं दे पाती। उल्टे प्रिय को देखने की खातिर मेरी ओर से मुँह ही फेरे रहती है। अर्थात प्रियतम के सौंदर्य पान की भूखी अपनी इन आंखों को खटकता है और अच्छा नहीं लगता इसी प्रकार सूरमा या काजल ऑजने वाली सलाई भी अब जैसे इन आंखों के लिए अपरिचित एवं खटक ने वाली हो गई है।
अर्थात काजल अंजन तक के व्यवधान को भी यह आंख स्वीकार नहीं करती और पल भर के लिए भी प्रिय की तरफ से हटती नहीं है। प्रिय को छोड़कर यह आंखें और कहीं पल भर ठहर जाने का स्थान कतई नहीं पाती और मूंदने पर तो जैसे अत्यधिक व्याकुल होकर तड़प नहीं लगती है। अर्थात प्रिय के अतिरिक्त आंखें मैं तो कुछ और देखना भी चाहती हैं और नहीं पल भर को विश्राम पाने। सो सुंदरता ही पसंद करती है || रूपनिधान सुजान लखें रूपनिधान सुजान लखें
घनानंद कवि कहते हैं हे सखी, मैं तो बस यह सोच सोच कर या चिंता में पढ़ कर ही डूबती जा रही हूं कि पता नहीं विधाता ने मेरी इन आंखों को यह कौन सा असाध्य रोग लगा दिया है कि पल भर को भी वश में नहीं रहती। रूपनिधान सुजान लखें
विशेष
1. कवि ने प्रेम को एक असाध्य रोग कहकर उसके दृढ़ता का महत्व प्रतिपादित किया है।
2. ‘दीठि ही पीठि दई है’ पीठ फेर ना या मुंह मोड़ना मुहावरे का बड़ा ही सटीक एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
3. पद्य में उपमा, उत्प्रेक्षा, तुल्या, अनुप्रास आदि विभिन्न अलंकारों का प्रभावी एवं आदि के प्रयोग किया गया है।
4. भाषा माधुर्य गुण प्रधान, चित्रमय, संगीतात्मक प्रभावमयी एवं मुहावरेदार है उसमें सजीव का भी है।
यह भी पढ़ें 👇
- आँखि ही मेरी पै चेरी भई लखि | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
- रूपनिधान सुजान सखी | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
- पिउ बियोग अस बाउर जीऊ । कविता की संदर्भ सहित व्याख्या। मलिक मुहम्मद जायसी
Recent Comments