महावीर प्रसाद द्विवेदी जीवन परिचय, रचनाएं
महावीर प्रसाद द्विवेदी जीवन परिचय :—
महावीर प्रसाद द्विवेदी
साहित्य के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के बल से युगांतर प्रस्तुत करने वाले प्रख्यात आलोचक व निबंधकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 15 मई 1864 ई. में उत्तर प्रदेश के राय बरेली जिलांतर्गत दौलतपुर गाँव के एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
इनके पिता श्री रामसहाय द्विवेदी महावीर हनुमान के परम भक्त थे शायद इसी कारण उन्होंने अपने पुत्र का नाम ‘महावीर सहाय’ रखा जो बाद में इनके अध्यापक की भूल से महावीर प्रसाद हो गया। इनके पिता सेना में थे किंतु 1857 ई. के गदर आंदोलन में इनके पिता की पलटन बागी हो गई थी। इस पलटन के काफी लोग विद्रोह के कारण मारे गए या पलटन छोड़कर भाग गए थे। पंडित रामसहाय दूबे भी भागकर मुंबई चले गए जहाँ वे एक मंदिर में सेवा कार्य करने लगे।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की शिक्षा-दीक्षा बहुत ही परेशानियों से हुई। द्विवेदी जी का पूरा परिवार विद्याव्यसनी था, जिस कारण उन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिंदी, बांगला, अंग्रेजी आदि का ज्ञान प्राप्त किया था। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को तुलसीकृत रामचरित मानस’ से बहुत लगाव था। इसी कारण उन्होंने बचपन में ही इसका अध्ययन कर लिया था। आरंभिक शिक्षा गाँव के विद्यालय और बरेली में हुई। इसके बाद ‘तार भेजने’ का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए अपने पिता जी के पास मुंबई चले गए। प्रशिक्षण के बाद इनकी नियुक्ति-झाँसी के जी.आई.पी. रेलवे के तार-विभाग में हो गई।
अपनी योग्यता और तत्परता से वे सेवा कार्य में लगातार उन्नति करते गए। एक बार उनका अपने अंग्रेज अधिकारी से मनमुटाव हो गया और वे महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को दबाने की कोशिश करने लगा। अपने अधिकारी के व्यवहार से क्षुब्ध व परेशान होकर उन्होंने अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पूर्ण रूप से साहित्य सेवा में लीन हो गए। सन् 1903 में द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ के संपादक का कार्यभार संभाला और जीवन पर्यन्त सारा समय हिंदी सेवा में बिताया।
उन्होंने सरस्वती पत्रिका का संपादन जिस तत्परता, लगन, नियमितता एवं नि:स्वार्थ भाव से किया उसका वर्णन उस काल के ‘सरस्वती’ अंक में खुद-ब-खुद दिख जाता है। उनकी साहित्यिक सेवा इतनी गुरुतर थी कि उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के विचार से सन् 1931 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा ‘आचार्य’ तथा हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘विद्या वाचस्पति’ की पदवी से विभूषित किया गया। हिंदी गद्य को अपनी विशिष्ट प्रतिभा से संपन्न बनाकर अनवरत सेवा करने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का स्वर्गवास 21 दिसंबर 1938ई. में रायबरेली में हो गया।
बाल्यावस्था में जब महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने तुलसीकृत ‘रामचरितमानस‘ पढ़ा तभी से उनका झुकाव हिंदी साहित्य की ओर हो गया। मुंबई पहुँचकर यह रूचि और प्रबल हो उठी। फलतः वे कविताएँ लिखने लगे। समय की परिपाटी के अनुसार उनकी प्रारंभिक रचनाएँ ब्रजभाषा में ही हुई किंतु शीघ्र ही उन्हें पता लग गया कि हिंदी के क्षेत्र-विस्तार के लिए बोलचाल की भाषा खड़ी बोली में ही साहित्य रचना आवश्यक है। तत्पश्चात् उन्होंने खड़ी बोली को न केवल स्वयं अपनाया बल्कि एक कुशल पथप्रदर्शक की भांति कितने ही लेखकों को अपने साथ लेकर उसे साहित्य का सर्वमान्य भाषा भी बना दिया।
अपने 20 वर्ष के सरस्वती के संपादन काल में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने जहाँ भाषा के परिष्कार और उसके स्वरूप-निर्धारण के लिए अथक प्रयास किया था वहीं हिंदी में लेखकों तथा कवियों की एक पीढ़ी का निर्माण भी किया। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जैसे प्रतिभाशाली कवि और अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे तेजस्वी पत्रकार तथा उपन्यास सम्राट प्रेमचंद्र जैसे रत्न आचार्य द्विवेदी जी की ही देन हैं। द्विवेदी जी मौलिक और अनूदित-पद्य और गद्य ग्रंथों की कुल संख्या 80 से उपर है। अकेले गद्य में इनको 14 अनूदित और 50 मौलिक कृतियाँ प्राप्त है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नांकित है
काव्य संग्रह- नागरी (1901ई.), काव्य मंजूषा (1903ई.), कविता कलाप (1909ई.), सुमन (1923ई.), द्विवेदी काव्यमाला (1940ई.) आदि।
निबंध व आलोचना- हिंदी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना (1899ई) , नैषधचरित चर्चा (1900ई.), हिंदी कालिदास की समालोचना (1901ई.) हिंदी भाषा की उत्पति (1907ई.) संपतिशास्त्र (1908ई.) कालिदास की निरंकुशता (1912ई.), नाट्यशास्त्र (1912ई.), कविता विलाप (1918ई.), रसज्ञ रंजन (1920ई.) कालिदास और उनकी कविता (1920ई.), सुकवि संकीर्तन (1924ई.), साहित्यालाप (1926ई.), विज्ञ-विनोद (1926ई.) कोविद कीर्तन (1928ई.), आलोचनांजलि (1928ई.), साहित्य संदर्भ (1928ई.), चरित्र-चित्रण (1929ई.), प्राचीन चिह्न (1929ई.), चरित चर्चा (1930ई.), साहित्य सीकर (1930ई.), वाग्विलास (1930ई.), विचार विमर्श (1931ई.) आदि ।
अनुवाद- ऋतुतरंगिणी (1891 ई., कालिदास के ऋतुसंहार का छायानुवाद), गंगा लहरी (1891ई., पंडितराज जगन्नाथ की ‘गंगा लहरी’ का सवैयों में अनुवाद), भामिनी विलास (1891 ई., पंडित जगन्नाथ के ‘भमिनी विलास’ का अनुवाद), बेकन-विचार-रत्नवली (1901 ई, बेकन के प्रसिद्ध निबंधों का अनुवाद) शिक्षा (1906ई., हर्बर्ट स्पेंसर के ‘एज्यूकेशन’ का अनुवाद), स्वाधीनता (1907ई., जॉन स्टुअर्ट मिल के ‘ऑन लिवर्टी’ का अनुवाद), रघुवंश (1912ई., रघुवंश महाकाव्य का भाषा अनुवाद), वेणी-संहार (1913 ई., संस्कृत कवि भट्टनारायण के वेणी संहार नाटक का अनुवाद), किरातार्जुनीय (1917ई., भारवि के — किरातनार्जुनीयम’ का अनुवाद) आदि। इसके अतिरिक्त भी उनकी कई बालोपयोगी एवं अन्य पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।
यह भी पढ़े :—
- डॉ. नगेन्द्र की जीवनी – भाषा शैली, आलोचना दृष्टि, ग्रंथावली
- रामचंद्र शुक्ल की आलोचना-दृष्टि
- डॉ. नगेंद्र की आलोचना दृष्टि
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय
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