रूप धरे धुनि लौं घनआनन्द सूझासि बूझ की | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
रूप धरे धुनि लौं घनआनन्द सूझासि बूझ की दीठि सु तानौ ।
लोचन लेत लगाय के संग अनंग अचंभै की मूरति मानौ ।
है किधौं नाहिं लगी अलगी सी लखी न परै कति क्यौं हूँ प्रमानौ।
तो करि-भेदहि किंकनि जानति तेरी सौं एरी सुजान हौं जानौ ।
रूप धरे धुनि लौं घनआनन्द
प्रसंग :— यह पद्य कविवर घनानन्द – विरचित ‘सुजानहित’ से उद्धृत किया गया है। उस सुन्दर नायिका की कमर है कि नहीं, यह एक रहस्य है। इसी रहस्य अर्थात् नायिका की पतली कमर के रहस्य का काव्यगत वर्णन करते हुए, व्याख्येय पद्य में कविवर घनानन्द कह रहे हैं
व्याख्या :— घनानन्द कवि कहते हैं कि मुझे कुछ ऐसा सूझता है कि उस नायिका की कमर का रूप ध्वनि के समान सूक्ष्म एवं अदृश्य है। उसे तो बस बुद्धि की दृष्टि या फिर मानस – नेत्रों से ही देखा या अनुभव किया जा सकता है।
इस नायिका का सौंदर्य तो जैसे एक साकार आश्चर्य है या मानो आश्चर्य का मूर्त अथवा साकार रूप है कि उसे देखकर नेत्र बस उसी के होकर रह जाते हैं। उस सुन्दरी सुजान अर्थात् नायिका की कमर है भी कि अथवा नहीं है, वह लगी रहने पर भी एकदम अलग- सी दिखाई देती है।
ऐसी दशा में कवि उसके अस्तित्व को प्रमाणित करे भी तो क्योंकर और केसे? हे सुन्दरी ! तेरी कमर का भेद तो बस तुम्हारी तगड़ी ही जानती है, तुम्हारी कसम, मैं तो बस मात्र इतना ही जान पाया हूँ। अर्थात् मेरे विचार में नायिका की तगड़ी का आकार-प्रकार देखकर ही उसकी कमर की सूक्ष्मता और स्थिति का वास्तविक अनुमान लगाया जा सकता है। अन्य कोई उपाय नहीं है।
विशेष
1. कवि ने रहस्यवादी चिन्तन के समय नायिका की कमर को भी रहस्यमय बताया है। जैसे ब्रह्म का रहस्य नहीं सुलझाया जा सकता, वैसे ही कमर की भी स्थिति है।
2. पद्य में उत्प्रेक्षा, संदेह, विषय और अनुप्रास, उपमा आदि अलंकार है ।
3. भाषा सानुप्रासिक, प्रसाद गुण से संयत, संगीतात्मक और चित्रमय है ।
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