Causes of Poverty in india : भारत में निर्धनता के कारण
निर्धनता के कारण
अब भारत में निर्धनता के मुख्य कारणों का विस्तृत विवेचन किया जा सकता है । भिन्न-भिन्न विचारकों ने निर्धनता के भिन्न-भिन्न कारण बतलाये हैं । हेनरी जार्ज के अनुसार दरिद्रता का मूल कारण भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व और एकाधिकार है ।
बड़े नगरों में जहाँ भूमि इतनी मूल्यवान है कि फुट से नापी जा सकती है, आप निर्धनता और विलासिता की चरम सीमायें पायेंगे और सामाजिक स्तर की दो चरम सीमाओं की अवस्था में यह असमानता सदैव भूमि के मूल्य से नापी जा सकती है ।”
मार्क्स के अनुसार निर्धनता का कारण पूँजीपतियों का श्रमिकों की मजदूरी हड़प कर उनका शोषण करना है । कार्ल मार्क्स दबा लिखता है “वह (श्रमिक) अतिरिक्त मूल्य का सृजन करता है जो कि, पूँजीपति के लिए, शून्य से एक सृष्टि के सारे आकर्षण रखता है ।” माल्थस के अनुसार निर्धनता का कारण यह है कि जबकि खाद्य सामग्री समानान्तर वृद्धि से बढ़ती है, जनसंख्या गुणोत्तर वृद्धि के अनुसार बढ़ती है ।
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उपरोक्त सभी सिद्धातों में निर्धनता के किसी एक कारण पर अत्यधिक बल दिया गया है परन्तु आजकल अधिकांश विचारक निर्धनता को एक से अधिक कारकों के कारण मानते हैं । पहले व्यक्ति के भाग्य या व्यक्ति के कर्म को ही उसकी निर्धनता के लिये उत्तरदायी ठहराया जाता था ।
परन्तु आज का आर्थिक संसार इतना जटिल है कि निर्धनता का कारण केवल व्यक्ति को ही नहीं माना जा सकता । लैण्डिस और लैण्डिस ने लिखा है- ”संसार में जहाँ आर्थिक खतरे इतने अधिक हैं, व्यक्ति को सदैव निर्धनता के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता ।”
अतः व्यक्तिगत कारणों के अतिरिक्त निर्धनता के भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक तथा अन्य कारण भी हैं यद्यपि आजकल शायद सब लोग बात न मानें कि निर्धनता में भाग्य का भी कोई हाथ है परन्तु इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर उसके अपने गुणों और सामर्थ्य का बड़ा प्रभाव पड़ता है । कुछ लोगों की सामर्थ्य इतनी कम होती है कि भरसक प्रयास करने पर भी वे जीवन भर निर्धन बने रहते है ।
1. व्यक्तिगत कारण:
(i) रुग्णावस्था:
हन्टर ने लिखा है- “निर्धनता और बीमारी एक जटिल समझौता बना लेती हैं जिसमें कि मनुष्यों में सबसे अधिक अभागों के दुःखों को बढ़ाने में प्रत्येक दूसरे की सहायता करता है ।” रोग से जबकि एक ओर व्यक्ति काम नहीं कर सकता और उसकी आय कम हो जाती है, वहाँ दूसरी ओर उसकी आय का बहुत सा अंश रोग के उपचार और पथ्य के प्रबन्ध में खर्च हो जाता है ।
इस प्रकार बीमारी गरीबी बढ़ाती है । दूसरी ओर निर्धनता भी बीमारी बढ़ाती है । पौष्टिक भोजन के अभाव में भी कठोर परिश्रम करने वाले और गन्दी गलियों में रहने वाले निर्धन मजदूरों में क्षय आदि बीमारियाँ अधिक दिखाई पड़ती हैं इस प्रकार निर्धनता और बीमारी दोनों एक दूसरे को बढ़ाती है ।
(ii) मानसिक रोग:
मानसिक रोगों के कारण भी व्यक्ति किसी काम के करने योग्य नहीं रहता । उसकी आय कम हो जाती है । निरन्तर अभाव से मन का सन्तुलन बनाये रखना बड़ा कठिन होता है । पाश्ले लिखता है- “अकेले गरीबी ही प्रत्यक्ष रूप से जीविकाहीन गरीबों में पाये जाने वाले पागलपन के मामलों की सब संख्या का एक बड़ा भाग उत्पन्न करती” ।
(iii) दुर्घटना:
दुर्घटनाओं से अंग-भंग हो जाते हैं या सख्त चोट आती है और या तो व्यक्ति बिल्कुल बेकार हो जाता है या उसकी काम करने की सामर्थ्य बहुत कम हो जाती है । दूसरे उसकी रोटियों के भी लाले पड़ जाते हैं । यदि दुर्घटना से घर का कमाने वाला बेकार हो जाता है तो पूरा घर निर्धन हो जाता है ।
(iv) अशिक्षा:
निर्धनता और अशिक्षा का भी परस्पर सम्बन्ध है । अशिक्षा से निर्धनता बढ़ती है क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति की धन कमाने की सामर्थ्य बहुत कम रहती है । दूसरी ओर बहुत से लोग निर्धनता के कारण पट्ट-लिख नहीं पाते और अशिक्षित रह जाते हैं । इस प्रकार निर्धनता और अशिक्षा एक दूसरे की सहायता करके गरीबों के दुःख बढ़ाती रहती हैं ।
(v) आलस्य:
आलस्य भी निर्धनता का एक कारण है । बहुत से लोग ऐसे है जो कि काम मिलने पर भी अधिक काम करके अपनी निर्धनता दूर करना नहीं चाहते और केवल उतना ही काम करते हैं जिससे जैसे-तैसे उनका पेट भारता है तथा बाकी समय सोने या इधर-उधर बैठने में ही गंवा देते हैं । गर्म देशों में आलस्य निर्धनता का एक बड़ा कारण है ।
(vi) अपव्यय:
कहावत है कि अन्धाधुन्ध व्यय करने से तो काँरू का खजाना भी खत्म हो जाता है । वास्तव में निर्धनता का कारण आय का कम होना ही नहीं बल्कि खर्च का आय से अधिक होना भी है । बहुत से लोग ऐसे भी है जिनकी फजूल खर्ची इतनी अधिक बड़ी होती है कि पर्याप्त पैसा आने पर भी वे निर्धन के निर्धन बने रहते हैं । भारतवर्ष में गांव वालों की निर्धनता का एक बड़ा कारण उनका असन्तुलित व्यय भी है । होली, दिवाली आदि त्यौहारों पर उनका जितना धन व्यय होता है उससे बहुत ही कम शिक्षा, सफाई, औषधि, प्रकाश आदि पर खर्च होता है ।
(vii) नैतिक पतन:
नैतिक पतन में मनुष्य शराब, वेश्या, जुआ आदि दुर्व्यसनों में फंस जाता है । इससे अच्छी भली स्थिति वाले व्यक्ति भी गरीब बन जाते हैं । इस प्रकार का व्यक्यि कामचोर हो जाता है और उसकी कार्यक्षमता भी कम हो जाती है । इस प्रकार नैतिक पतन भी निर्धनता का एक कारण है ।
(viii) अन्य कारण:
निर्धनता के उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त और भी बहुत से व्यक्तिगत कारण ऐसे हैं जिनसे निर्धनता बढ़ती है । अधिक सन्तान होने पर उनका भरण पोषण करना कठिन हो जाता है और रहन-सहन कर स्तर गिर जाता है इस प्रकार अधिक सन्तानोत्पत्ति निर्धनता का एक बड़ा कारण है ।
भारतवर्ष में यह कारण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है । इसी प्रकार बुढ़ापा, अपराध, कमाने वाले की मृत्यु आदि से भी बहुत से परिवार और निर्धन हो जाते हैं । इसी प्रकार कई बार आग लग जाने या बाढ़ आदि से बहुत से परिवारों की सारी सम्पत्ति नष्ट हो जाती है और वे दाने दाने को मोहताज हो जाते हैं ।
रतवर्ष में देश विभाजन के समय हुए साम्प्रदायिक दंगों में सम्पत्ति की भारी हानि हुई और हजारों लोग बेघरबार हो गये । असामान्य व्यक्तित्व भी निर्धनता का एक बड़ा कारण है । चिड़चिड़ा या झगडालू व्यक्ति कहीं भी जम नहीं सकता और बहुधा बेकार रहता है । वास्तव में व्यक्तित्व के सभी दोष किसी न किसी रूप में निर्धनता बढ़ाते हैं ।
2. भौगोलिक कारण:
उपरोक्त व्यक्तिगत कारणों के अतिरिक्त निम्नलिखित भौगोलिक कारण भी निर्धनता बढ़ाते हैं:
(i) प्रतिकूल मौसम:
आर्थिक समृद्धि के लिये प्राकृतिक साधनों के साथ-साथ अनुकूल मौसम भी बड़ा आवश्यक है । ओले, अनावृष्टि, अतिवृष्टि आदि से अच्छी खासी खेती भी बर्बाद हो जाती है । इसी प्रकार भयंकर गर्मी या अत्यधिक शीत भी आर्थिक क्रियाओं में बाधायें डालते हैं ।
(ii) प्राकृतिक साधनों की कमी:
अच्छी जमीन, पानी, खनिज पदार्थ आदि प्राकृतिक साधनों के अभाव में कोई भी देश समृद्ध नहीं बन सकता और गरीब ही बना रहता है । इस प्रकार रेगिस्तानों और ऊँचे पहाड़ों पर रहने वाले लोग अधिकतर दरिद्र होते हैं ।
(iii) प्राकृतिक आपत्तियाँ:
प्रतिकूल मौसम के अतिरिक्त प्राकृतिक आपत्तियाँ जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प तूफान, बाढ़, बिजली आदि से भी खेती और सम्पत्ति को बड़ी हानि पहुँचती हैं । जापान में भूकम्पों से हजारों मकान चन्द मिर्चों में धराशायी हो जाते है । चीन में ह्यागहों नदी की भयंकर बाढ़ से बहुत सी खेती नष्ट होती है । इन आपत्तियों से सम्पत्ति के साथ-साथ मानव शक्ति की भी हानि होती है और हजारों लोग दर-दर के भिखारी हो जाते है । इस प्रकार प्राकृतिक विपदाओं से निर्धनता बढ़ती जाती है ।
(iv) नाशक कीड़े:
इन आपत्तियों के अतिरिक्त नाशक कीड़े भी सम्पत्ति को बड़ी हानि पहुँचाते हैं । टिड्डी आदि खड़ी खेती को चट कर जाते हैं । दीमक किताबें फर्नीचर आदि बहुत सी वस्तुओं को चाट जाती है ।
3. आर्थिक कारण:
भौगोलिक कारणों के अतिरिक्त आर्थिक कारण भी मनुष्यों में निर्धनता बढ़ाते है । मुख्य आर्थिक कारक निम्नलिखित हैं:
(i) कृषि सम्बन्धी कारण:
कृषि सम्बन्धी आर्थिक कारण अच्छी खाद, सुधरे हुए औजारों, अच्छे बीजों, सिचाई के साधनों, अच्छे पशुओं आदि का अभाव, रोग नाशक कीड़ों तथा पशुओं से खेती की रक्षा का उचित प्रबन्ध न होना, अन्धविश्वास, जमींदारी द्वारा किसानों का शोषण, जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े होना ऋणग्रस्तता आदि से किसान सदैव निर्धन बना रहता है ।
(ii) असमान वितरण:
यदि उत्पादन काफी भी हो तब भी अनेक देशों में असमान वितरण के कारण लाखों किसान और मजदूर निर्धनता का जीवन बिताते है । पूँजीवादी व्यवस्था में धनिक और भी धनी होते हैं और निर्धन और भी निर्धन हो जाते है ।
(iii) आर्थिक अपकर्ष:
आर्थिक अपकर्ष से व्यापार में मन्दी आ जाती है, सैकड़ों कारखाने बन्द हो जाते है और हजारों लाखों मजदूर तथा छोटा-मोटा धन्धा करने वाले बेकार हो जाते हैं ।
(iv) बेकारी:
बेकारी दरिद्रता का सबसे बड़ा आर्थिक कारण है । अधिकतर दरिद्रता बेकारी के कारण है । भारतवर्ष जैसे देश में बेकारी दरिद्रता का सबसे बड़ा कारण है ।
(v) अनुत्पादक संचय:
यदि देश में बहुत सा धन सोने चाँदी के जेवरों आदि की शक्ल में और गड़े धन के रूप में बेकार रखा रहता है तो देश के व्यापार में बड़ी कठिनाई पड़ती है । भारतवर्ष में यह गरीबी का एक बड़ा कारण है । 7 मई 1958 के नेशनल हैराल्ड में यह छपा था कि हाल में प्रकाशित रिवर्ज बैंक ऑफ इण्डिया के बुलेटिन में यह छपा है कि इस देश का 110 करोड़ रुपया सोने चांदी के रूप में घरों में बेकार पड़ा है ।
(vi) हानिकारक आर्थिक नीति:
कभी-कभी देश में साधन और श्रम सभी होने पर भी निर्धनता बनी रहती है क्योंकि सरकार की आर्थिक नीति हानिकारक होती हैं । उदाहरण के लिये भारत में अंग्रेजों के समय में सरकार की आर्थिक नीति ऐसी थी जिससे देशी उद्योगों को हानि पहुँचती थी, देश का बहुत सा धन बाहर चला जाता था और विदेशी माल देश में धड़ाधड़ खपता जाता था ।
4. सामाजिक कारण:
उपरोक्त आर्थिक कारणों के अलावा निम्नलिखित सामाजिक कारण भी निर्धनता बढ़ाते हैं:
(i) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली:
शिक्षा प्रणाली का दोषपूर्ण होना निर्धनता का कारण है । उदाहरण के लिये भारत में प्रौद्योगिक प्रशिक्षण कम होने पर डिग्री वाली शिक्षा अधिक होने के कारण यहाँ लाखों शिक्षित व्यक्ति बेकार हैं और निर्धनता का जीवन बिताते है । शिक्षा प्रणाली का दूसरा दोष उसका कीमती होना है । इससे निर्धन लोग उसका लाभ नहीं उठा पाते ।
(ii) मकानों की दुर्व्यवस्था:
गंदे और तंग स्लमों में रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य खराब हो जाता है जिनसे उनकी कार्य करने की क्षमता घट जाती है और आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है ।
(iii) गृह शिक्षा का अभाव:
निर्धनता के लिये स्त्रियाँ भी उतनी ही उत्तरदायी हैं जितने पुरुष । घर की व्यवस्था स्त्रियों के ही हाथ में होती है । यदि वे घर का प्रबन्ध भली प्रकार नहीं कर पातीं तो पुरुष के पर्याप्त धन कमाने पर भी घर में निर्धनता बनी रहती है । इसका मुख्य कारण स्त्रियों की शिक्षा में गृह शिक्षा का अभाव है ।
(iv) विवाह सम्बन्धी कुरीतियाँ:
भारतवर्ष में दहेज की प्रथा के कारण बहुत से परिवार जीवन भर निर्धन बने रहते है । लोग मर-मर कर कमाते हैं और पेट काट कर लड़कियों की शादी के लिए दहेज जोड़ने में सारा जीवन बिता देते है । शक्ति से अधिक दहेज देने वालों के परिवार बहुत निर्धन हो जाते है ।
(v) स्वास्थ्य रक्षा की अपर्याप्त व्यवस्था:
बीमारी निर्धनता का प्रमुख कारण है । अस्वास्थ्यकर पर्यावरण में रहने से व्यक्ति की कार्यक्षमता भी घटती है । बीमारी के कारण कमाने वाले की मृत्यु हो जाने या नौकरी छूट जाने से घर का घर दरिद्र हो जाता है । बीमारी से व्यक्ति की आय का एक बड़ा भाग उसके उपचार में लग जाता है । अत: स्वास्थ्य रक्षा की पर्याप्त व्यवस्था के अभाव में निर्धनता जड़ जमाकर बैठ जाती है ।
(vi) युद्ध:
युद्ध भी निर्धनता का एक बड़ा कारण है । युद्ध से देश की मनुष्य शक्ति और सम्पत्ति की भारी हानि होती है । कार्यश्रम नवयुवकों में से हजारों लाखों युद्ध में काम आते हैं और उनके परिवार निर्धनता में डूब जाते हैं । इससे स्त्री-पुरुषों की संख्या का अनुपात बिगड़ जाता है । इससे नैतिक पतन बढ़ता है ।
युद्ध से सम्पूर्ण सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था बिगड़ जाती है, जीवन स्तर गिर जाता है और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को भारी क्षति पहुँचती है । युद्ध के बाद बहुधा महामारियां फैलती हैं और बहुत से लोगों का मानसिक सन्तुलन बिगड जाता है । इन सब कारणों से देश में दरिद्रता बढ़ती है ।
5. अन्य कारण:
उपरोक्त सामाजिक आर्थिक व्यक्तिगत तथा भौगोलिक कारणों के अतिरिक्त भी कुछ और कारण निर्धनता बढ़ाते हैं । इस प्रकार अनेक राजनैतिक कारण जैसे अत्यधिक टैक्स लगाना आदि से देश की आर्थिक अवस्था खराब हो जाती है ।
जनसंख्या के अत्यधिक बढ़ जाने से सबकी आवश्यकताओं की भली प्रकार पूर्ति नहीं हो पाती और देश में निर्धनता फैलती है । यातायात के साधनों का अभाव आदि उद्योग और व्यापार की उन्नति में बाधक जितने भी कारक हैं उन सभी से निर्धनता बढ़ती है । अतः निर्धनता स्वयं निर्धनता बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है ।
(i) कृषि की उन्नति:
भारतीय किसान बड़ा दरिद्र है क्योंकि भारत में प्रति एकड़ पैदावार अन्य देशों से बहुत कम है । पुराने ढर्रे की खेती, गोबर को जला देना, सिंचाई की कमी, ऋणग्रस्तता, शादी विवाह आदि अवसरों पर अत्यधिक खर्च अनावृष्टि, अतिवृष्टि, खेतों का छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटा होना, किसान का अपने खेतों पर स्वामित्व न होना आदि भारत में कम उत्पादन के कारण हैं । सरकार को इन सभी कारणों को दूर करने के उपाय करने होंगे ।
प्रथम पंचवर्षीय योजना के अनुसार भूधारण सम्बन्धी सुधार में तीन बातें होनी जरूरी हैं- (i) लगान की दर में कमी हो, (ii) भूमि का पट्टा सुरक्षित हो, (iii) किसानों को भूमि खरीदने का अधिकार, हो । लगान के उपज से 1/4 या 1/5 से अधिक न होने की भी सिफारिश की गई है ।
(ii) शक्ति का विकास:
कृषि को उन्नति के साथ-साथ शक्ति का विकास करना भी आवश्यक है क्योंकि उसके बिना उद्योगों का विकास नहीं हो सकता और उद्योगों का विकास किये बिना केवल खेती के सहारे निर्धनता दूर करना असम्भव है । भारत में जल-विद्युत बनाने की सम्भावना बहुत अधिक है ।
(iii) छोटे तथा कुटीर उद्योगों का विकास:
भारत की निर्धनता का एक बड़ा कारण अंग्रेजों के जमाने में कुटीर उद्योगों का नष्ट हो जाना भी है । भारत में किसान वर्ष में कई महीने कोई काम नहीं करता । काम के अभाव में अधिकतर लोग मजदूरी या नौकरी की तरफ भागते हैं । अतः छोटे तथा कुटीर उद्योगों के विकास तथा उनके उत्पादन के बेचने का समुचित प्रबन्ध होना आवश्यक है ।
(iv) बड़े उद्योगों का विकास:
बड़े उद्योगों का विकास किये बिना छोटे उद्योगों का बढ़ाना भी कठिन हो जाता है । इस्पात खनिज तेल, यातायात तथा सन्देशवहन के साधन तथा परमाणु शक्ति आदि के विकास के बिना आधुनिक युग में किसी भी देश की आर्थिक उन्नति असम्भव है ।
इनके अतिरिक्त लोहा, एल्यूमिनियम, सीमेंट, रेयान तन्तु, पैट्रोल, रेल के इंजन, डीजल गाड़ियाँ, बाइसिकिल, बिजली की मोटरें, रासायनिक पदार्थ, सूती कपड़े, खाद, चीनी, पटसन, मशीनें, जलयान, पेन्सिलीन आदि की वस्तुओं के विकास के लिये बड़े उद्योगों की आवश्यकता है । इनसे राष्ट्रीय आय बढ़ेगी । राष्ट्रीय आय से प्रत्येक व्यक्ति आय बढ़ेगी । प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से दरिद्रता दूर होगी ।
(v) शिक्षा:
गरीबी को दूर करने के लिए शिक्षा की बड़ी आवश्यकता है । इसमें भी औद्योगिक प्रशिक्षण की ओर विशेष रूप में ध्यान देने की आवश्यकता है । इससे उत्पादन बढ़ेगा और निर्धनता दूर होगी ।
(vi) बेकारी उन्मूलन:
भारत में निर्धनता का एक बड़ा कारण बेकारी है । यह बेकारी शिक्षित और अशिक्षित सभी लोगों में है । इससे देश की बहुत सी मनुष्य शक्ति व्यर्थ जा रही हैं और गरीबी बढ़ती जाती है । अतः बेकारी उन्मूलन निर्धनता को दूर करने की दिशा में अनिवार्य कदम है ।
(vii) सामाजिक बीमा:
निर्धनता का एक बड़ा कारण असहायों, वद्धों, अनाथों और बेरोजगारों का बेसहारा होना है । अधिकतर निर्धनता इन्हीं लोगों में पाई जाती है । सामाजिक बीमा योजना से इनकी निर्धनता दूर की जा सकती है ।
(viii) न्यायपूर्ण वितरण:
केवल उत्पादन बढ़ने से ही किसी देश की निर्धनता दूर नहीं की जा सकती जब तक कि राष्ट्रीय आय का न्यायपूर्ण वितरण न किया जाये । सरकार को इस ओर दृढ़ कदम उठाने की आवश्यकता है ।
(ix) परिवार नियोजन:
यदि भारत की जनसंख्या इसी प्रकार से बढ़ती रही तो उत्पादन बढ़ने पर भी देश की आर्थिक अवस्था में अधिक सुधार न हो सकेगा भारत की निर्धनता का एक बड़ा कारण तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या है । अत: परिवार नियोजन द्वारा जनसंख्या को सन्तुलित करने की आवश्यकता है ।
(x) न्यूनतम मजदूरी का निश्चय:
भारत में किसानों के साथ-साथ मजदूरों में भी घोर दरिद्रता है । इसका कारण मालिकों द्वारा उनका शोषण है । वे उनको कम से कम मजदूरी देकर उनसे अधिक से अधिक काम लेने की चेष्टा करते हैं । सरकार को न्यूनतम मजदूरी को निश्चित करके इस शोषण को रोकना चाहिये ।
(xi) मद्य निषेद्य:
भारत में निर्धनता का एक कारण मद्यपान है । मद्य-निषेध के लिये सरकारी कानून और सामाजिक प्रचार द्वारा प्रयास होना चाहिये ।
(xii) आवास की समुचित व्यवस्था:
भारत के नगरों में हजारों मजदूर रात को फुटपाथ पर जमीन पर सोते है । उनके रहने के लिये मकान नहीं है । मध्यवर्ग की आय का एक बड़ा भाग मकान के भाड़े के रूप में दे देना पड़ता है । इससे निर्धनता बढ़ती है । अत: रहने की समुचित व्यवस्था होनी आवश्यक है ।
निर्धनता को रोकने के उपायों के उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि इसके लिये किसी एक दिशा में काम करना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि सभी दिशाओं में चेष्टा करनी पड़ेगी । हर्ष है कि भारत सरकार इस विषय में प्रयत्नशील है ।
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