रैणि गँवाइ सोइ करि गंवायो पाइ | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | संत रविदास |
रैणि गँवाइ सोइ करि गंवायो पाइ।
हीरा यहु तन पाइ करि कोडी बदले जाइ।।
रैणि गँवाइ सोइ करि
प्रसंग:– इस साखी में रविदास ज्ञान विहीन सामान्य लोगों के जीवन पर टिप्पणी कर रहे हैं। ऐसे लोग सामान्य पशु सादृश जीवन जी रहे हैं। उनके जीवन का प्रमुख कर्म खाना और सोना है। जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है।
व्याख्या:– इस साखी में रविदास टिप्पणी करते हैं कि नादान व्यक्ति रात तो नींद में व्यतीत कर देता है। कोई सार्थक काम नहीं करता। यह कार्य तो पशु भी करता है और दिन खाना खाने में गुजार देता है। असली समय तो यही है। फिर भक्ति कब करेगा।
निष्कर्ष निकालते हुए रविदास कहते हैं कि मनुष्य को हीरे जैसा अमूल्य शरीर मिला है। इसी मानव तन से ही भक्ति हो सकती है, जो यह मनुष्य नादान करता नहीं। और यह शरीर तुच्छ कोड़ी के बदले जा रहा है। शरीर तो नष्ट होगा ही चाहे इसे भक्ति में लगा दो, चाहे खाने-सोने में लगा दो।
विशेष:-
रविदास इस साखी में निरर्थक जीवन की झांकी प्रस्तुत करके सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा दे रहे हैं।
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