प्रेमचंद युग की हिंदी कहानी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए |
प्रेमचंद युग की हिंदी कहानी :– प्रेमचंद की कहानी कला की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि प्रेमचंद ने हिंदी कहानियों के उद्देश्य व दृष्टिकोण में परिवर्तन किया तथा विषय – वस्तु में व्यापक विस्तार किया। प्रेमचंद के पूर्व कहानियाँ आदर्शवादी उद्देश्य को समाहित करती थी।
प्रेमचंद ने अपनी कहानियों की शुरुआत ‘आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद’ से किया लेकिन लेखन के अंतिम दौर में ‘चरम यथार्थवाद’ की स्थापना की। इसके अलावा प्रेमचंद पूर्व कहानियाँ कुछ विषयों तक ही सीमित थीं लेकिन प्रेमचंद ने हिंदी कहानियों में विषय वैविध्य को स्थापित किया।
प्रेमचंद युग की हिंदी कहानी
जैसे – पूस की रात में किसानों की समस्या, बूढ़ी काकी में वृद्धों की समस्या, दूध का दाम दलित समस्या, कफन गरीबी की समस्या, नया विवाह में महिलाओं की समस्या आदि। अगली विशेषता यह है कि प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में हिंदुस्तानी भाषा शैली का प्रयोग किया, जो कि उस समय की लोक भाषा भी थी।
प्रेमचंद पूर्व हिंदी की भाषा शैली को लेकर यह विवाद था कि वह फारसीनिष्ठ होनी चाहिए या संस्कृतनिष्ठ। प्रेमचंद ने इस विवाद को समाप्त करने के साथ ही लोक भाषा और साहित्यिक भाषा के द्वैत को भी समाप्त किया। इसके अलावा प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में मुहावरों व लोकोक्तियों का प्रयोग करने के साथ ही हास्य – व्यंग्य का भी प्रयोग किया।
अगली विशेषता यह है कि प्रेमचंद ने हिंदी कहानी में स्वतंत्र चरित्र के निर्माण की शुरुआत की, जो आदर्शवादी ना होकर यथार्थवादी थे। प्रेमचंद पूर्व कहानियों में चरित्र लेखक के हाथ की कठपुतली होते थे लेकिन प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में स्वतंत्र चरित्र का निर्माण किया, जो परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करते थे।
अगली विशेषता यह है कि प्रेमचंद की कहानियाँ एक व्यापक सामाजिक आधार पर विकसित हुई हैं। प्रेमचंद की रचना काल के समय भारत का स्वाधीनता संघर्ष अपने चरम स्तर पर था। ऐसे समय में प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में निम्न वर्ग व ग्रामीण जीवन की जन समस्याओं को उकेरा।
इसके साथ ही ‘ईदगाह’ व ‘शतरंज के खिलाड़ी’ जैसी कहानियों में प्रेमचंद अपनी कहानियों में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भी समाहित करते हैं, जो उनकी लोकतांत्रिक मानसिकता व समावेशी दृष्टि का परिचायक है।
प्रेमचंद के कहानी कला की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इन्होंने अपनी कहानियों में मनोविज्ञान का बेहतरीन प्रयोग किया है। उल्लेखनीय है कि हिंदी साहित्य के कुछ कहानीकार जैसे जैनेंद्र, इलाचंद्र जोशी और अज्ञेय; पश्चिमी विचारक सिगमंड फ्रॉयड के मनोविश्लेषणवाद से प्रभावित थे और इन कहानीकारों ने फ्रॉयड के मनोविश्लेषणवाद को ही आधार मानकर मनोवैज्ञानिक कहानियों की रचना की।
लेकिन प्रेमचंद के मनोविज्ञान का आधार किसी दार्शनिक के विचार नहीं थे। प्रेमचंद को समाज की अच्छी समझ थी। इसी समझ और अपने जीवन अनुभवों को आधार बनाकर प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में मनोविज्ञान का सुंदर प्रयोग किया। अपनी कहानियों में प्रेमचंद ने समाज के विभिन्न वर्गों के मनोविज्ञान का चित्रण खूबसूरती के साथ किया है।
प्रेमचंद के रचनाकाल में भारतीय समाज में दलितों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। प्रेमचंद ने ठाकुर का कुँआ, दूध का दाम, सद्गति आदि कहानियों में दलित मनोविज्ञान का चित्रण किया है। ‘सद्गति मे प्रेमचंद ने दलित मनोविज्ञान के दो पक्षों को उकेरा है – एक वर्ग ऐसा है जो शोषण को स्वीकार्य समझता है तो दूसरी ओर दलितों में एक उभरता हुआ वर्ग ऐसा भी है जो इस शोषण का विरोध करने को भी तैयार है।
अलग्योझा, बड़े घर की बेटी और नया विवाह आदि कहानियों में प्रेमचंद ने नारी मनोविज्ञान का चित्रण किया है। ‘सभ्यता का रहस्य’ में किसान मनोविज्ञान, ‘बूढी काकी’ में वृद्ध मनोविज्ञान तथा ‘ईदगाह’ में बाल मनोविज्ञान की सूक्ष्म परतों को प्रेमचंद ने उधेड़ा है। ध्यातव्य है कि ईदगाह में प्रेमचंद ने अन्य कहानियों में दलितों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। प्रगति की तरह वर्गात मनोविज्ञान का नया हो हामिद के चरित्र के माध्यम प्रेमचंद व्यक्तिगत मनोविज्ञान का चित्रण किया है।
‘सभ्यता का रहस्य’ में किसान मनोविज्ञान, ‘बूढी काकी’ में वृद्ध मनोविज्ञान तथा ‘ईदगाह’ में बाल मनोविज्ञान की सूक्ष्म परतों को प्रेमचंद ने उधेड़ा है। ध्यातव्य है कि ईदगाह में प्रेमचंद ने अन्य कहानियों में दलितों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी।
प्रगति की तरह वर्गात मनोविज्ञान का नया हो हामिद के चरित्र के माध्यम प्रेमचंद व्यक्तिगत मनोविज्ञान का चित्रण किया है। प्रेमचंद के कहानियों में एक विशेष शैली का प्रयोग भी दिखता है, जिसे आत्मकथात्मक शैली या किस्सागो शैली कहते हैं।
इस शैली के अंतर्गत प्रेमचंद ने कहानी के मुख्य चरित्र का चित्रण ‘मैं (उत्तम पुरुष) के माध्यम से किया। इस शैली का प्रयोग ‘मुफ्त का यश’, ‘गिल्ली डंडा’ जैसी कहानियों में दिखता है।
अतः उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि प्रेमचंद ने हिंदी कहानी की नवजात परंपरा को अपने लेखन के द्वारा एक परिपक्व परंपरा में रूपांतरित किया। अपने लेखन कला के माध्यम से जिस प्रकार प्रेमचंद ने स्वतंत्र चरित्रों का निर्माण किया, चरम यथार्थवाद की स्थापना की और चरित्र प्रधान कहानियों की नींव डाली ।
यह सब विशेषताएँ बाद के हिंदी कहानी आंदोलनों का आधार बनीं और नई कहानी आंदोलन के कहानीकारों ने ‘भोगे हुए यथार्थ’ को प्राथमिकता देते हुए इन विशेषताओं को पूर्णता तक पहुँचाया। अतः इस बात में कोई दो राय नहीं कि प्रेमचंद की कहानी कला के वैशिष्ट्य ने हिंदी कहानी के विकास में महती भूमिका का निर्वहन किया।
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