Hindi Sahitya Archives - Page 3 of 21 - Rajasthan Result

Category: Hindi Sahitya

मीरा के विरह में

मीरा के विरह में उनके लौकिक जीवन के अभाव के पक्ष की गहरी भूमिका है, इस कथन के प्रकाश में उसकी विशेषताओं का निर्धारण कीजिए |

मीरा के विरह में उनके लौकिक जीवन :– मीरा की माधुर्य भाव की भक्ति में सबसे प्रगाढ़ और मार्मिक स्वर विरह का है। उन्होंने ऐसा प्रियतम ही चुना है, जिससे लौकिक जगत में मिलन...

मीरा के गिरधर नागर

मीरा के गिरधर नागर की छवि ईश्वर के सगुण-निर्गुण स्वरूप का अतिक्रमण करती है, कथन से अपनी सहमति का उल्लेख कीजिए |

मीरा के गिरधर नागर सगुण भक्त कवियों के परम् आराध्य भगवान कृष्ण ही हैं। उनके समान ही वे उनके सगुण स्वरूप की लीलाओं का गान करती है। मीरा के पितामह रात्र बूदा जी वैष्णव...

आदि अपार अलेख अनंत

आदि अपार अलेख अनंत अकाल | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह ||

  आदि अपार अलेख अनंत अकाल अभेख अलक्ख अनासा | कै शिवशक्ति, दये सुति चार, रजो-तम-सत्त तिहू पुर वासा | द्यौस-निसा ससि सूर के दीप, सु सृष्टि रची पंच तत्व प्रकासा | वैर बढ़ाई...

कृपा-सिन्धु तुम्हरी कृपा

कृपा-सिन्धु तुम्हरी कृपा | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह ||

  कृपा-सिन्धु तुम्हरी कृपा, जो कछु मो पर होइ | रचौं चण्डिका की कथा, वाणी सुभ सब होइ || 2 || कृपा-सिन्धु तुम्हरी कृपा प्रसंग : प्रस्तुत पद्य दशम गुरु गोविन्द सिंह की रचना...

ज्योति जगमगे जगत में

ज्योति जगमगे जगत में, चंडि चमुंड प्रचंड | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |

  ज्योति जगमगे जगत में, चंडि चमुंड प्रचंड । भुज- दंडन दंडनि-असुर, मंडनि- भुव नवखंड ॥ 3 ॥ ज्योति जगमगे जगत में प्रसंग : प्रस्तुत पद्य कविवर, दशम गुरु गोविन्द सिंह विरचित ‘ चण्डी-चरित्र’...

तारनि लोक

तारनि लोक, उधारनि भूमिहिं | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |

  तारनि लोक, उधारनि भूमिहिं, दैत-संहारिनी चंडि तुही है। कारन ईस कला, कमला, हरि, अद्रि-सुता जहं देख उही है । तामसता ममता नमता कविता कवि के मन मध्य गुही है । कीनौ है कंचन...

प्रमुद - करन

प्रमुद – करन, सब भय-हरन | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |

  प्रमुद – करन, सब भय-हरन, नाम चंडिका जासु ।  रचौं चरित्र विचित्र तुअ, करौ सुबुद्धि प्रकासु ॥ 5 ॥ प्रमुद – करन प्रसंग : प्रस्तुत पद्य दशम गुरु गोविंद सिंह विरचित काव्य ‘...

आयसु अब जो होइ

आयसु अब जो होइ ग्रंथ तो मैं रचौं | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |

  आयसु अब जो होइ ग्रंथ तो मैं रचौं ।  रतन प्रमुद कर वचन चीन्ह तामैं गयौं ।  भाषा सुभ सब करौं धारि हौं कृत्ति में।  अद्भुत कथा अपार समुझि करि चित्त में ।।...

त्रास कुटुंब के होइ उदास

त्रास कुटुंब के होइ उदास अवास | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |

  त्रास कुटुंब के होइ उदास अवास कौ त्यागि बसौ बन राई |  नाम सुरथ्य मुनीसर वेष समेत समाधि समाधि लगाई।  चंडि अखंड खंडे करि कोप भई सुर-रक्षन कौं समुहाई |  बूझह जाइ तिनै...

मुनीश्वरो (मार्कण्डेय ) उवाच

मुनीश्वरो (मार्कण्डेय) उवाच | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |

  मुनीश्वरो (मार्कण्डेय) उवाच हरि सोइ रहे सजि सेज तहाँ।  जल-जाल कराल विसाल जहाँ ।  भयौ नाभि-सरोज तैं विस्वकर्ता |  स्रुति – मैल तैं दैत रचे जुग ता ॥ 8 ॥ मुनीश्वरो प्रसंग :...

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