बैठे मारुति देखते रामचरणारविन्द | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |
बैठे मारुति देखते रामचरणारविन्द, युग ‘अस्ति नास्ति’ के एक रूप, गुणगण अनिन्द्य, साधना मध्य भी साम्य वामा कर दक्षिणपद, दक्षिण करतल पर वाम चरण, कपिवर, गद् गद् पा सत्य सच्चिदानन्द रूप, विश्राम धाम,...
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