Parivartini Ekadashi : आज है परिवर्तिनी एकादशी, जरूर पढ़ें यह व्रत कथा - Rajasthan Result

Parivartini Ekadashi : आज है परिवर्तिनी एकादशी, जरूर पढ़ें यह व्रत कथा

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

Parivartini Ekadashi Vrat Katha: युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से कहा, हे भगवान! भाद्रपद शुक्ल एकादशी का नाम क्या है? कृप्या कर मुझे इसकी विधि तथा इसका माहात्म्य कहिए। युधिष्ठिर के सवाल का जवाब देते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली एकादशी जो सब पापों का नाश करती है, इस उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूं। तुम ध्यानपूर्वक सुनो। इसे पद्मा/परिवर्तिनी एकादशी जयंती एकादशी भी कहा जाता है।

Indira Ekadashi Vrat Katha: आज इंदिरा एकादशी को जरूर सुनें यह व्रत कथा, पितरों को मिलेगा मोक्ष का वरदान

अगर मनुष्य इस एकादशी का यज्ञ करता है तो उसे वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पापियों का पाप नाश करने के लिए इस व्रत से बढ़कर और कोई उपाय नहीं है। जो मनुष्य इस दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है उसे तीनों लोक पूज्य होते हैं। इस व्रत को करने से मोक्ष प्राप्त होता है।

जो भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन करता है उसका फल वही है जिसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत मनुष्य को अवश्य करना चाहिए। इसे Parivartini Ekadashi इसलिए कहते हैं क्योंकि इस दिन भगवान करवट लेते हैं। श्रीकृष्ण के वचन सुनकर युधिष्ठिर ने कहा, हे भगवान! मुझे अतिसंदेह हो रहा है। आप किस तरह करवट लेते हैं और किस तरह सोते हैं? आपने किस तरह राजा बलि को बांधा था और वामन का रूप धारण किया था? चातुर्मास के व्रत की कथा आप मुझे कहें। आप जब सोते हैं तब मनुष्य का क्या कर्तव्य है। ये सब आप मुझे विस्तार से बताएं।

श्रीकृष्ण ने कहा, हे राजन! एकादशी की व्रत कथा का श्रवण करें। त्रेतायुग में बलि नाम का एक दैत्या था। वो मेरा परम भक्त था। उसने मुझे प्रसन्न करने के लिए कई तरह के वेद सूक्तों के साथ पूजन किया था। साथ ही वो लगातार ब्राह्मणों का पूजन करता तथा यज्ञ के आयोजन करता था। लेकिन उसे इंद्रदेव से द्वेष था। यही कारण था कि उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं पर अपना आधिपत्य हासिल कर लिया था। बलि से सभी देवतागण बेहद दुखी थे। ऐसे में वो सभी एकत्र होकर भगवान के पास गए।

Papankusha Ekadashi : आज है पापांकुशा एकादशी, क्या है व्रत एवं पूजा का मुहूर्त, महत्व तथा पारण समय

बृहस्पति सहित इंद्रादिक देवता प्रभु के निकट गए और नतमस्तक हो गए। वो वेद मंत्रों से भगवान का पूजन करने लगे। अत: मैंने वामन रूप धारण किया। यह मेरा पांचवां अवतार था। फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से मैंने राजा बलि को परास्त किया।

यह सुनकर राजा युधिष्ठिर बोले, हे जनार्दन! इस अवतार में आपने दैत्य महाबली को कैसे जीता? श्रीकृष्ण ने कहा, मैंने बलि से तीन पग भूमि मांगी थी। राजा बलि ने इस इच्छा को तुछ समझा और मुझे वचन दे दिया कि वो मुझे तीन पग जमीन देगा। मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, मह:लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया।

सूर्य, चंद्रमा आदि सब ग्रह और देवता गणों ने अलग-अलग तरह से वेद सूक्तों से प्रार्थना की। तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़ा और कहा, हे राजन! एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए। अब तीसरा पग कहां रखूं? इतने में ही राजा बलि ने अपना मस्तक मेरा सामने झुका दिया। ऐसे में मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर स्थापित कर दिया। इससे वह पाताल को चला गया। उनकी विनम्रता देख मैंने उससे कहा कि मैं हमेशा तुम्हारे पास ही रहूंगा। फिर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति की स्थापना की गई।

ठीक इसी तरह दूसरी मूर्ति क्षीरसागर में शेषनाग के पष्ठ पर हुई! श्रीकृष्ण ने कहा, हे राजन! इस Parivartini Ekadashi के दिन भगवान सोते हुए करवट लेते हैं। ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए जो तीनों लोकों के स्वामी हैं। रात्रि जागरण समेत तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना भी उचित माना गया है। अगर इस व्रत को विधिपूर्वक किया जाए तो व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इस दौरान यह कथा पढ़ने से व्यक्ति को हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!