Rahim: रहीम का जीवन परिचय, व्यक्तित्व, दोहे - Rajasthan Result

Rahim: रहीम का जीवन परिचय, व्यक्तित्व, दोहे

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भारतीय परंपराओं, रीति-रिवाजों, संस्कृति तथा साहित्य के प्रति गहरी आस्था रखने वाले सिद्धहस्त कवि Rahim कला के सच्चे साधक और कवियों के कल्पतरू हैं | व्यक्तित्व की दृढ़ता उनके सेनापतित्व की सूचक है तो स्वभाव की कोमलता उनके कवि रूप की व्यवहार कुशल रहीम का व्यक्तित्व मानवीय गुणों से ओतप्रोत होने के साथ दायित्वों के सफल निर्वहन में भी खराब उतरा है युद्धवीर तथा दानवीर रहीम दूरदर्शी भी रहे हैं और कूटनीतिक दांवपेचो में सिद्धहस्त भी |

वे लोग जीवन से क्रियात्मक अनुभव बटोर कर काव्य रूप में रत्नों की तरह प्रस्तुत कर देने वाले महान कवि तथा विधिक भाषाओं के प्रखंड ज्ञाता भी रहे हैं एतदर्थ रहीम राजा, सेनापति, भक्त, कवि, भाषाविद, ज्योतिषी, दानवीर, समाज सुधारक तथा नीति कार की भूमिकाएं एक साथ निभाने वाले ऐसे रचनाकार हैं जिनका संपूर्ण हिंदी साहित्य जगत में अपना एक विशिष्ट स्थान है |

Rahim का जन्म 17 दिसंबर सन 1556 ईसवी को लाहौर में हुआ रहीम के पिता का नाम अतालिक वेरमखां खानखाना जो कि मुगल साम्राज्य के स्वामी भक्त सेना नायक तथा हुमायूं के अंतरंग मित्र थे | पिता बैरम खान द्वारा दिया गया अब्दुल रहीम नाम धीरे-धीरे अब्दुर रहीम बन गया तथा कविता में आकर यह रहीम या रहीमन के रूप में प्रयुक्त होने लगा पिता बैरम खां की उपाधि खानखाना उन्हें विरासत में मिली मुगल दरबार का उच्चतम पर वकील मुतलक उन्हें प्राप्त था वह अकबर के नौ रत्नों में से एक थे उन्होंने तुजके बाबरी का भी अनुवाद किया है |

 

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Rahim : रचना संसार

अब्दुल रहीम खानखाना की उपलब्ध होने वाली संपूर्ण प्रकाशित कृतियां 6 हैं दोहावली, नगर शोभा, बरवें नायिका भेद, भक्तिपरक बरवें, श्रंगार सोरठा, तथा मदनाष्टक | इनके अतिरिक्त कुछ फुटकर पद तथा कुछ संस्कृत के श्लोक जिन्हें खेट कोतुक जातकम के नाम से जाना जाता है इन कृतियों में दोहावली नीति काव्य की प्रसिद्ध कृति है जिनमें रचनाकार के रूप में रहीम और रही मन के नाम की छाप मिलती है नगर शोभा श्रंगार की कृति है जिसमें नायिकाओं का वर्णन और व्यवसाय के आधार पर वर्णन है |

बरवै नायिका भेद Rahim की विशिष्ट कृति है बरवै छंद के जनक रहीम ने इसमें नायिका भेद की परंपरा का निर्वाह किया है भक्ति परक बरवै मैं गणेश सूर्य महादेव कृष्ण राम कथा हनुमान आदि की वंदना श्रृगार वर्णन ऋतु वर्णन भक्ति ब्रह्म गीत प्रसंग तथा वैराग्य दी से संबंधित छंद है |

श्रंगार सोरठा के नाम से 6 छंद उपलब्ध है जो रहीम ग्रंथावली में प्रकाशित हैं जन भाषा फारसी तथा अन्य देशी भाषाओं के मिश्रण से बनने वाली उर्दू या रेखता भाषा में कवि ने मदनाष्टक लिखा है |

मालिनी छंद में लिखी इस कृति में आठ छंद हैं यह समग्र कृतियां रहीम के भक्त ह्रदय की कवि चेतना है पवित्र भावना का समर्पण और लोकजीवन का सफल एवं समर्थ स्पर्श उन्हें पूर्णतया भारतीय आत्मा सिद्ध करते हैं |

Rahim दोहावली

रहीम दोहावली मैं कहां जाता है कि रहीम ने सतसई की रचना की थी किंतु अभी तक उनकी सतसई की प्रमाणित प्रति नहीं मिली है अब तक संपादकों ने मुक्तक संग्रह हो और हस्तलिखित ग्रंथों से उनके दोहे चुनकर संपादित किए हैं इसमें 299 दोहे हैं |

2 नगर शोभा

इस ग्रंथ की रचना रहीम ने स्वतंत्र रूप से की है श्रंगार सोरठ की भाषा से इसका भाषा शाम्य में है | रचना के अंत में ऊंच नगर शोभा नवाब खानखाना कृत लिखा है इसकी प्राचीन हस्तलिखित प्रति भी मिलती है इसमें 142 दोहे हैं रहीम का यह काव्य सामंती संसर्ग का परिचायक है | इस ग्रंथ में साथ व्यवसायिक जातियों का उल्लेख मिलता है यह सत्य है कि इस ग्रंथ के किसी भी दोहे में रहीम की छाप नहीं है |

 

3. बरवै नायिका भेद

इस ग्रंथ की कई हस्तियों प्रतियां (कृष्ण बिहारी मिश्र तथा काशीराज की प्रतियां) मिली हैं | जिसका संपादन पंडित छेदीलाल तिवारी ने किया है कहा जाता है कि रहीम के एक अनुसार को विवाह के कारण लौटने में कुछ देरी हो गई थी उसे रहीम के रुष्ट होने का भय था । तब उसकी स्त्री ने एक बरवै लिख कर भेजा था :—

प्रेम प्रीति के बिरवा चलेहु लगाएं |

सीजन की सुध लीजो मुरझिन न जाए ||

इस पर रहीम ने उस सेवक को पुरस्कृत कर छुट्टियां बढ़ा दी थी तबसे बरवै रहीम का प्रिय छंद हो गया था स्वयं रहीम ने अवधी भाषा में रचित इस लोकप्रिय संघ के महत्व को व्यक्त करते हुए लिखा है:—

कवित्व कहयो दोहा कहयो, तुले न छप्पय छंद |

विरच्यो यहै विचार कै, यह बरवै रस कंद ||

रीति ग्रंथों की शैली पर आधारित बरवै नायिका भेद संबंधित ग्रंथों में सबसे प्राचीन है इसके 119 ग्रंथ छंद प्राप्त हुए हैं |

4. बरवै

रहीम ने नायिका भेद के अलावा कुछ स्वतंत्र बरवै लिखे हैं इसकी हस्तलिखित प्रतियां मेवाड़, अलवर तथा इलाहाबाद से प्राप्त हुई हैं इसमें 101 छंद प्राप्त हुए हैं | यह श्रंगार व शांत रस की रचना है बारहमासा पद्धति पर लिखे गए आषाढ़ सावन भादो तथा फाल्गुन संबंधित चार छंद है |

गोस्वामी तुलसीदास ने बरवै ‘रामायण’ रहीम के रचे हुए बरवै को देखकर लिखा है :—

कवि रहीम बरवै रचे, पठये मुनिवर पास |

लखि तेई सुंदर छंद में, रसना किए प्रकास ||

5. श्रंगार सोरठ

मैं 7 छंद मिले हैं जो ग्रंथावली में श्रंगार सोरठ के अंतर्गत दिए गए हैं इसमें विप्रलभ श्रृंगर का सुंदर नियोजन हुआ है||

6. मदनाष्टक

रहीम कवितावली में संग्रहित नागरी प्रचारिणी सभा काशी वाला मदनाष्टक रहीम कृत माना गया है माया शंकर याज्ञिक नए रहीम रत्नावली में सम्मेलन पत्रिका वाले पाठ को शुद्ध माना है यह संस्कृत की रचना है इसमें मालिनी छंद है इसमें कृष्ण की बंसी के व्यापक प्रभाव गोपियों की वह लता तथा कृष्ण गोपी की उत्कृष्ट प्रेम भावना की अभिव्यक्ति हुई है इसमें आठ छंद प्रयुक्त हुए हैं ||

7. फुटकर पद

इसमें रहीम रचित कुछ फुटकर पद मिलते हैं जिनकी संख्या 113 है इस तरह से इन रचनाओं का पता भरतपुर के पंडित माया शंकर याज्ञिक ने लगाया है और इनकी सभी रचनाओं को एक पूरा संग्रह रहीम रत्नावली के रूप में प्रयुक्त किया है ||

 

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  2. Meera Bai: मीरा बाई का जीवन परिचय, दोहे
  3. Surdas: सूरदास का जीवन परिचय हिंदी में

 

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