Raskhan: रसखान का जीवन परिचय, रचना, दोहे
रसखान (Raskhan) का वास्तविक नाम सैयद इब्राहिम या सैयद गुलाम मोहम्मद है रसखान के नाम, जन्म, जन्म स्थान और मृत्यु तिथि के संबंध में विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न मत प्रस्तुत किए हैं :—
शिव सिंह सेंगर ने अपने इतिहास ग्रंथ ‘शिवसिंह सरोज’ में लिखा है कि रसखान कवि सैयद इब्राहिम पिहानी वाले संवत 1630 में हुए यह मुसलमान कवि थे | श्री वृंदावन में जाकर कृष्ण चंद्र की भक्ति में ऐसे डूबे की फिर मुसलमानी धर्म त्याग कर माला कंठी धारण किए हुए वृंदावन की रज में मिल गए रसखान (Raskhan) का समय 1645 उनकी अवस्था 70 वर्ष मानने तक उनका मरण काल संवत 1685 मानना पड़ेगा |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास में रसखान के संबंध में लिखा है दिल्ली के एक पठान सरदार थे इन्होंने प्रेम वाटिका में अपने को शाही वंश का कहा है |
देखि ग़दर हित साहिब, दिल्ली नगर मसान |
छिनहि बादसा वंस की, ठसक छोरि रसखान ||
प्रेम निकेतन श्री बनहि आई गोवर्धन धाम |
लहयो सरन चित चाहिके, जुगल सरूप ललाम ||
संभव है पठान बादशाहो की कुल परंपरा से इनका संबंध रहा हो यह बड़े भारी कृष्ण भक्त और गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के बड़े कृपा पात्र शिष्य थेे| इन का रचनाकाल संवत 1640 के उपरांत ही माना जा सकता है क्योंकि गोसाई विट्ठलदास जी का गोलोकवास संवत 1643 में हुआ था |
252 वैष्णव की वार्ता के अनुसार रसखान (Raskhan) दिल्ली में रहते थे तथा एक बनिए के पुत्र के प्रति आ सकते थे इनकी आसक्ति की सर्वत्र चर्चा भी होने लगी एक बार कुछ वैष्णवो ने रसखान से कहा कि यदि इतना प्रेम तुम भगवान से करो तो तुम्हारा उद्धार हो सकता है प्रत्युत्तर मैं रसखान ने पूछा कि भगवान कही हैं?
वैष्णव ने उनको कृष्ण भगवान का एक चित्र दे दिया रसखान चित्र को लेकर घूमते घूमते ब्रज पहुंचे अनेक मंदिरों में दर्शन करने के उपरांत अपने आराध्य की खोज में यह गोविंद कुंड पर जा बैठे और श्रीनाथजी के मंदिर की ओर टकटकी लगाकर देखने लगे|
यहां श्रीनाथजी का नित्य प्रति दर्शन कर गोसाईं विट्ठलनाथ जी के शरणागत रहकर कृष्ण लीला गान करने लगे मध्य काल के कृष्ण भक्त कवियों में रसखान एक सिद्ध कवि हैं |
व्यक्ति तथा प्रतिकार दोनों रूपों में मध्यकाल के इस कवि ने भारतीय सामासिक संस्कृति को आत्मसात किया तभी तो मुसलमान होकर भी यह कृष्ण के उपासक बने और अनुपम कृष्ण काव्य के प्रणेता भी |
वर्तमान युग की धार्मिक कट्टरता सांप्रदायिक वैमनस्य आदि के संदर्भ में रसखान (Raskhan) का व्यक्तित्व तथा कृतित्व धार्मिक सांप्रदायिक सामजस्य तथा धर्म संप्रदाय निरपेक्ष दृष्टि के उद्घोषक हैं | इनकी जय श्री कृष्ण भक्ति इनके जैसा गोकुल प्रेम सूरदास के अलावा अन्य कृष्ण कवियों में कम ही पाया जाता है मुस्लिम कृष्ण भक्त कवियों में तो रसखान के निकट और कोई कभी नहीं पहुंच पाता रसखान की अनुपम एवं अद्भुत कृष्ण भक्ति पर मुग्ध होकर ही तो भारतेंदु अपने उतरा भक्तमाल मैं कह उठे थे रन मुसलमान हरिजन के कोटि न हिंदू वारिये |
Table of Contents
रसखान (Raskhan) का रचना संसार
रसखान (Raskhan) वास्तव में ‘यथानामस्तथागुण:’ एक कहावत को चरितार्थ करने वाले भक्त कवि हैं इनका काव्य किसी प्रयास का फल नहीं बल्कि मन के भावों की सहज अभिव्यक्ति है रसखान का काव्य वास्तव में अलौकिक भक्ति का सफल सोपान है रसखान श्री कृष्ण जी के प्रति समर्पित भावुक में प्रेम भक्त रहे |
वे जन्म जन्मांतरो में किसी न किसी रूप में कृष्ण से संबंधित वस्तुओं के स्वामित्व का आनंद प्राप्त करना चाहते थे
‘जो खग हो तो बसेरों करो मिली कालिंदी कूल कदंब की डारन’ |
कवि श्रेष्ठ रसखान ने किसी प्रबंध काव्य की रचना नहीं की भावनाओं की उमंग में आने पर स्वभाव अत कंठ से जो उद्गार व्यक्त होते वही कविता का रूप बन जाता रसखान की मुख्यता चार रचनाएं मानी जाती हैं
- सुजान रसखान
- प्रेम वाटिका
- दानलीला
- अष्टयाम
संवेदना और शिल्प दोनों दृष्टिओं से ‘सुजान रसखान’ रसखान की अनमोल रचना है इसमें प्रेम भक्ति कृष्ण लीला, रूप माधुरी, वंशी प्रभाव, ब्रज प्रेम आदि से संबंधित सरस प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया है सुजान रसखान स्फुट छदो का संग्रह है जिसमें 181 सवेंये, 17 कवित्व, व 12 दोहे तथा 4 सोरढे हैं सब मिलाकर 214 पद हैं|
सुजान रसखान
सुजान रसखान में श्रीकृष्ण के प्रति विविध प्रकार से रसखान ने अपने मनोभावों को व्यक्त किया है ।
1. मो मन मानिक लै गयोचित चोर नंद नन्द ।
अब बे मन में क्या करूं परी फेर के फंद ।।
2. स्याम सघन घन घेरी के, रस बरस्यो रासखानी ।
भई दिमानी पान करि, प्रेम मद्य मन मानि ।।
3. जल की न घट भरें, मग की न पग धरे ।
घर की न कछु करें बैठी भरें सासुरी ।
प्रेम वाटिका
रसखान की अत्यंत लोकप्रिय 53 दोहों में विरचित एक लघु काव्य कृति है इसका रचनाकाल संवत 1671 माना जाता है इस कृति में राधा कृष्ण को प्रेम वाटिका के मालिन माली मानकर अनूठे प्रेम तत्व का निरूपण किया है इस प्रेम वाटिका में रसखान के हृदय की भक्ति वाटिका की झलक मिलती है प्रेम वाटिका में प्रेम भावना का महत्व बतलाया गया है।
1. इक अंगी बिनु कारनहि, इक रस सदा समान ।
गने प्रियही सर्वस जो, सोई प्रेम प्रमान ।।
2. वेद मूल सब धर्म, यह कहे सवे श्रुति सार ।
परम धर्म है ताहुत, प्रेम एक अनिवार ।।
दानशीलता
केवल 11 शब्दों की एक लघु रचना है जिसमें राधा कृष्ण के सरस श्रृंगारी संवाद के माध्यम से पौराणिक कथा का आख्यान हुआ है।
एरी कहा वृषभान पुरा की, तों दान दिए दिन जान न पेहौ ।
जों दधीमाखन देहु जू चाखन अत लाखन या मग ऐहों ।।
नाही तो जो रस सो रस लेहो जु गोरस बेचन फेरिए न जेहों ।
नाहक नारि तू रारी बढ़वती गारि दिए फिरी आपहि देहो ।।
अष्टयाम
दोनों में विरचित एक लघु कृति है जिसमें श्री कृष्ण के दिन रात के क्रियाकलापों का मनोहारी वर्णन किया गया है ।
करी पूजा अर्चन कहां बैठत श्री नंदलाल ।
वंशी बाजत मधुर धुनि, सुनी सब होत निहाल ।।
ए सजनी लीनो लल्ला, ल्ह्यो नंद के गेह ।
चितयो मृदु मुस्काई के हरि सबै सुधि गेह ।।
अन्य लेख पढ़े
- Rahim: रहीम का जीवन परिचय, व्यक्तित्व, दोहे
- Tulsidas: तुलसीदास का जीवन परिचय तथा रचनाएं
- Meera Bai: मीरा बाई का जीवन परिचय, दोहे
- Surdas: सूरदास का जीवन परिचय हिंदी में
Raskhan: रसखान का जीवन परिचय, रचना, दोहे – अगर आपको इस पोस्ट मे पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।। धन्यवाद ।।
अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇
Recent Comments