अनखि चढ़े अनोखी चित्त चढ़ी उतरै न | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

अनखि चढ़े अनोखी चित्त चढ़ी उतरै न, मनमग मून्दै जाकौ बेह सब ओर तें | कांवरि सुठैन कौन रंग भीनीं हौ । न जानौं, लाड़नि सु लसी हुलसति मति चोर तें । बड़े नैन-...