आस लगाय उदास भए सुकरी जग मैं | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

  आस लगाय उदास भए सुकरी जग मैं उपहास कहानी। एक बिसास की टेक गहाय कहा बस जौ उर और है ठानी। एहो सुजान सनेही कहाय दई कित बौरत हौ बिन पानी । यौं...