एरे बीर पौन ! तेरो सब ओर | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | घनानंद |

  एरे बीर पौन ! तेरो सब ओर गौन, बीरी तो सो और कौन, मनैं ढ़रकौंही बानी दै। जगत के प्रान, ओछे बड़े सो समान, घन- आनंद-निधान सुखदान दुखियानि दै। जान उजियारे गुन-भारे अंत...