एड़ी ते सिखा लौ है अनूठियै अंगेर आछी | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
एड़ी ते सिखा लौ है अनूठियै अंगेर आछी, रोम रोम नेह की मैं रही री सनि । सहज सुछबि देखें दबि जाहि सबै बाय, बिन ही सिंगार और बानक बिराजै बनि। गति लै चलनि...
एड़ी ते सिखा लौ है अनूठियै अंगेर आछी, रोम रोम नेह की मैं रही री सनि । सहज सुछबि देखें दबि जाहि सबै बाय, बिन ही सिंगार और बानक बिराजै बनि। गति लै चलनि...
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