ओ रही मानस की गहराई | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | जयशंकर प्रसाद |

  ओ रही मानस की गहराई । तू सुप्त, शांत कितनी शीतल। निर्वात मेघ ज्यों पूरित जल।  नव मुकुर नीलमणि फलक अमल ओ पारदर्शिका चिर चंचल।  यह विश्व बना है परछाई।।  तेरा विषाद द्रव...