काहू कंजमुखी के मधुप है लुभाने जानै | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
काहू कंजमुखी के मधुप है लुभाने जानै, फूले रस भूलि घनआनन्द अनत हौ । कसे सुधि आवै बिसरे हू हो हमारी उन्हें, नए नेह पग्यौ अनुराग्यौ है मन तही । कहा करैं जी तें...
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