केलि की कलानिधान सुन्दरि महा सुजान | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
केलि की कलानिधान सुन्दरि महा सुजान, आन न समान छबि छांह पै थिपैयै सौनि | माधुरी- मुदित मुख उदित सुसील भाल, चंचल बिसाय नैनल लाज-भीजियै चितौनि || प्रिय अंग-संग घनआनन्द उमंगि हिय, सुरति...
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