क्यौं हँसि हेरि हरयौं हियरा अस क्यौ | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

  क्यौं हँसि हेरि हरयौं हियरा अस क्यौ हित के चित चाह बढ़ाई। काहे को बोलि सुधासने बैननि चैननि मैन- निसैन चढ़ाई। सो सुधि मो हिय मैं घनआनन्द सालनि क्यों हूँ कटे न कढ़ाई...