जहाँ न धर्म न बुद्धि नहि नीति | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | अंधेर नगरी । भारतेन्दु |

जहाँ न धर्म न बुद्धि नहि नीति ने सुजन समाज। वे ऐसहि आपुहिं नसै जैसे चौपट राज॥ जहाँ न धर्म न बुद्धि प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी रचित ‘अंधेर नगरी’ प्रहसन के...