जा मुख हांसी लसी घनआनन्द कैसे | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

  जा मुख हांसी लसी घनआनन्द कैसे सुहाति बसी तहां नासी | ज्याय हितै हानियै न हितू हंसी बोसन की कित कीजत हांसी || पोखि रसै जिय सोखत क्यौं, गुन बांधि हू डारत दोष...