जी पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको । कविता की सन्दर्भ सहित व्याख्या | भवानी प्रसाद मिश्र |
जी पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको पर पीछे-पीछे अक्ल जगी मुझको जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान । जी, आप न हों सुनकर ज्यादा हैरान । मैं सोच-समझकर आखिर अपने गीत...
जी पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको पर पीछे-पीछे अक्ल जगी मुझको जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान । जी, आप न हों सुनकर ज्यादा हैरान । मैं सोच-समझकर आखिर अपने गीत...
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