ज्योति जगमगे जगत में, चंडि चमुंड प्रचंड | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |

  ज्योति जगमगे जगत में, चंडि चमुंड प्रचंड । भुज- दंडन दंडनि-असुर, मंडनि- भुव नवखंड ॥ 3 ॥ ज्योति जगमगे जगत में प्रसंग : प्रस्तुत पद्य कविवर, दशम गुरु गोविन्द सिंह विरचित ‘ चण्डी-चरित्र’...