दुख – धूम की धूंधरि मैं घनआनन्द जौ यह जीव | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
दुख – धूम की धूंधरि मैं घनआनन्द जौ यह जीव घिरयौ घुटि है। मनभावन मीत सुजान सों नातो लग्यौ तनकौ न तऊ टुटि है। धन जीवन प्रान को ध्यान रहौ, इक सोच बच्यौऽब...
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