देखिधौं आरसी लै बलि नेकु लसी है गुराई | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

  देखिधौं आरसी लै बलि नेकु लसी है गुराई मैं कैसी ललाई ।  मानो उदोत्त दिवाकर की दुति पूरन चंदहिं भटैंन आई। फूलत कंज क्रमोद लखें घनआनन्द रूप अनूप निकाई | तो मुख लाल...