निरखि सुजान प्यारे रावरो रूचिर रूप | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

निरखि सुजान प्यारे रावरो रूचिर रूप, बाबरो भयौ है मन मेरी न सिखौ सुनै । मति अति छाकी गति थकी रतिरस भीजि, रीझ की उझिल घनआनन्द रह्यौ उनै । नैन बैन चित-चैन है न...