परकाजहि देह को धारि | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | घनानंद |

  परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथारथ ह्वै दरसौ | निधि-नीर सुधा के समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ || घनआनँद जीवन दायक हौ कछू मेरियौ पीर हियें परसौ | कबहूँ वा बिसासी...