सब सभा रही निस्तब्ध राम के स्तिमित नयन | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |

  सब सभा रही निस्तब्ध राम के स्तिमित नयन छोड़ते हुए शीतल प्रकाश देखते विमन, जैसे ओजस्वी शब्दों का जो था प्रभाव उससे न इन्हें कुछ चाव, न कोई दुराव, ज्यों हों वे शब्दमात्र...