पहिलें घनआनन्द सींची सुजान कहीं बतियाँ | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
पहिलें घनआनन्द सींची सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार-पगीं । अब लाय बिपेश की लाय बलाय बढ़ाय बिसास दगानि-दगी । अंखियाँ दुखियानि कुबानि परी न कहूँ लगैं कौन घरी सुलगी । मति दौरि थकी...
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