प्रीतम सुजान मेरे हित के निधान कहौ | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

प्रीतम सुजान मेरे हित के निधान कहौ, कैसे रहें प्रान जौ अनखि अरसाय हौ । तुम तौ उदार दीन-हीन आनि परयौ द्वार, सुनियै पुकार याही कौ लौं तरसाय हौ । चातक है रावरो अनोखे...