तपै लाग अब जेठ असाड़ी | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | मलिक मुहम्मद जायसी |

  तपै लाग अब जेठ असाड़ी । मै मोकहै यह छाजनि गाढ़ी।। तन तिनुवर या यूरों खरी। मैं विरहा आगरि सिर परी।। साँठि नाहि लगि बात को पैा। बिनु जिय भए मुंज तन ,छा।।...