मानुष हों तो वही रसखानि बसौं ब्रज। कविता की संदर्भ सहित व्याख्या

  मानुष हों तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।  जो पशु हौं तो कहा बस मेरो, चरों नित नन्द की धेनु मैंझारन।।  पाहन हों तो वही गिरि को जो धर्यो कर...