मेरोई जीव जौ मारत मोहि तौ प्यारे कहा | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

  मेरोई जीव जौ मारत मोहि तौ प्यारे कहा तुम सो कहनो है। आँखिन हूँ पहिचानि तजी कछु ऐसोई भागनि को लहनो है। आस तिहारियै हौ घनआनन्द कैसे उदास भएँ रहनो है। जान है...