युद्ध करौ तिन सौ भगवन्त न मारि सकै | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |
युद्ध करौ तिन सौ भगवन्त न मारि सकै अति दैत बली हैं। साल भये तिन पंच हजार दुहू लड़ते नहि बाँह टली है। दैतन रीझि कहौ ‘वर मांगि’, कहा हरि ‘सीसन देहि’ भली...
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