रति रंग-पगे प्रीति – पागे रैन जागे नैन | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
रति रंग-पगे प्रीति – पागे रैन जागे नैन, लागेई आवत घूमि घूमि छबि के छके। सहज बिलोल परे केलि की कलोलनि मैं, कबहूँ उमंगि रहें कबहूँ जके थके। नीकि पलकनि पीक लीक झलकनि सोहै,...
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