रावरे रूप की रीति अनूप | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | घनानंद |

  रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागत ज्यौं ज्यौं निहारियै।  त्यौं इन आँखिन बानि अनोखी, अघानि कहूँ नहिं आनि तिहारियै॥  एक ही जीव हुतौ सु तौ वार्यौ, सुजान, संकोच औ सोच सहारियै। ...