रूप के भारनि होतीं है सौहीं लजौं हियै दीठि | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

रूप के भारनि होतीं है सौहीं लजौं हियै दीठि सुजान यौं झूली | लागियै जाति, न लागि कहूँ निसि, पागी तहीं पलकौ गती भूली। बैठियै जू हिय पैठति आजु कहा उपमा कहियै समतूली ।...