रूप धरे धुनि लौं घनआनन्द सूझासि बूझ की | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

   रूप धरे धुनि लौं घनआनन्द सूझासि बूझ की दीठि सु तानौ ।  लोचन लेत लगाय के संग अनंग अचंभै की मूरति मानौ । है किधौं नाहिं लगी अलगी सी लखी न परै कति...